सिद्ध मंत्र प्रयोग | Siddh Mantra
Shri Ram Charit Manas Ke Siddh Mantra
भारत की प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं में श्री राम चरित्र मानस के सिद्ध मंत्र प्रयोग | Siddh Mantra का विशेष स्थान है। ये ऐसे मंत्र होते हैं जो पूरी तरह सिद्ध (activated) हो चुके होते हैं और इनके प्रयोग से जीवन में अद्भुत परिवर्तन लाया जा सकता है। चाहे वह स्वास्थ्य, धन, कार्यसिद्धि या आध्यात्मिक उन्नति हो – सिद्ध मंत्रों का प्रयोग अत्यंत प्रभावशाली होता है। इस लेख में श्री राम चरित्र मानस के कुछ विशेष मंत्र एवं उनके प्रयोग से होने वाली कुछ निवारण में आत्मिक शान्ति के बारे में चर्चा की है कि इन मंत्रो के प्रयोग किन परिस्थितियों में कर आपको लाभ की प्राप्ति के लिए आप प्रयोग कर सकते है।श्री राम चरित मानस चौपाई का प्रयोग विधि
१- विपत्ति नाश के लिये* राजिवनयन धरें धनु सायक,
भगत बिपति भजन सुखदायक || बालकांड दो० १७
२-कठिन कलेश को दूर करने के लिये
* हरन कठिन कलि कलुष कलेसू,
महामोह निसि दलन दिनेसू || अयोध्याकांड ३२५
३- विघ्न नाश के लिये
* सकल विघ्न व्यापहि नहिं तेही,
राम सुकृपां बिलोकहिं जेही || बालकाण्ड ३८
४-खेद नाश के लिये
* जब ते राम ब्याहि घर आये,
नित नव मङ्गल मोद बधाये || अयोध्याकांड दो० १
५-महामारी हैजा आदि के लिये
* जय रघुबंस बनज बन भानू,
गहन दनुज कुल दहन कृसानू || बालकांड २८४
६-उपद्रवों तथा रोगों की शांति के लिए
* दैहिक दैविक भौतिक तापा,
राम राज नहि काहुहि ब्यापा || उत्तर कांड २०
७-सङ्कट नाश के लिए
* जौं प्रभु दीन दयालु कहावा,
आरति हरन वेद जसु गावा || बालकांड ५८
* जपहिं नाम जन आरत भारी,
मिहि कुसंकट होहि सुखारी || बालकांड २१
* दीन दयाल बिरिदु संभारी,
हरहु नाथ मम संकट भारी || सुन्दर २६
८-विष नाश के लिए
* नाम प्रभाव जान सिव नीको,
कालकूट फल दीन्ह अमी को || बालकांड १८
त्वरित चिकित्सीय सहायता और उपचार करे, मंत्रो से सिर्फ आत्मीय विष नाश किया जा सकता है।
९-मस्तिष्क की पीडा (सिर दर्द) दूर करने के लिए
* हनुमान अङ्गद रन गाजे,
हांक सुनत रजनीचर भाजे || लंका कांड दो० ४६
१०- भूत को भगाने के लिये
* प्रनवउ पवन कुमार खल बन पावक ग्यान घन,
जासु हृदय आगार बहि राम सर चाप थर || बाल० १७
११-नजर झाड़ने के लिये
* स्याम गौर सुन्दर दोउ जोरी,
निरखहिं छवि जननी तृन तोरी || बालकाण्ड १६७
१२-खोई हुई वस्तु को प्राप्त करने के लिये
* गई बहोरि गरीब नेवाजू,
सरल सबल साहिब रघुराजू || बालकाण्ड १२
१३-जीविका प्राप्त करने के लिये
* बिस्व भरन पोषण कर जोई,
ताकर नाम भरत अस होई || बालकाण्ड १६६
१४- दारिद्रय को दूर करने के लिये
* अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के,
कामद घन दारिद दवारि के || बाल दो० ३१
१५-सुख सम्पत्ति के लिये
* जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं,
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ||
*तिमि सुख सम्पति बिनहि बोलाए,
घरमसील पहि जाहि सुभाए || बालकाण्ड २२३
१६-लक्ष्मी व सुख प्राप्ति के लिये मन्त्र
* जे सकाम नर सुनहि जे गावहि,
सुख सम्पति नाना विधि पाहि || उत्तर कांड १४
१७-पुत्र प्राप्त करने के लिये
* प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान,
सुख सनेह बस माता बाल चरित कर गान || बाल० २००
१८-विवाह के लिये
* तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सेवारि कै,
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुँअरि लई हँकारि के || बाल० ३२४
१९- शत्रुता नाश के लिये
* बयरु न कर काहू सन कोई,
राम प्रताप विषमता खोई || उत्तर० १६ (ग)
२० -शास्त्रार्थ में विजय पाने के लिये
* तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा,
ग्रायड भृगुकुल कमल पतंगा || बाल० २६०
२१-यात्रा की सफलता के लिये (चलते समय)
* चढि रथ सीय सहित दोउ भाई,
चले हृदय अवधहि सिरु नाई || अयोध्या २२
अथवा
* जामवंत के वचन सुहाए,
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए || सुन्दर०
२२-यात्रा तथा उद्योग की सफलता के लिये (प्रवेश करते समय)
* प्रविसि नगर कीजे सब काजा,
हृदय राखि कोसलपुर राजा || सुन्दर०४
२३-मनोरथ सिद्धि के लिये
* भव भेषज रघुनाथ जसु सुर्नाह जे नर अरु नारि,
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहि त्रिसिरारि || किष्किन्धा० ३० (क)
२४- यह पढ़कर गाय को गुड़ खिला दे तब यात्रा करे तो मुकदमा में विजय होती है । शत्रु का सामना करने के लिये
* कर सारंग साजि कटि भाथा,
अरि दल दलन चले रघुनाथा || ॥ लंका० ६७
२५--मुकदमा जीतने के लिये
* पवन तनय बल पवन समाना,
बुधि विवेक विग्यान निधाना || किष्किन्धा० २९
२६-परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिये
* जेहि पर कृपा करहि जनु जानी,
कबि उर अजिर नचाहि बानी || बाल० १०४
* मोरि सुधारिहि सो सब भांती,
जासु कृपा नहि कृपां अघाती || बाल० २७
२७-ग्राकर्षण के लिये
* जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू,
सो तेहि मिलइ न कछु सन्देहू || बाल० २५८
२८-शत्रु से मित्रता के लिए
* गरल सुधा रिपु करहि मिताई,
गोपद सिन्धु अनल सितलाई || सुन्दर० ४
२९-विद्या प्राप्ति के लिए
गुरुगृह गये पढ़न रघुराई,
अल्पकाल विद्या सब आई || बालकाण्ड दो० २०३
३०- सन्देह नाश के लिये
* राम कथा सुन्दर कर तारी,
संसय बिहग उड़ावनिहारी || बालकाण्ड दो० ११३
३१--ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
* अनुचित बहुत कहेउ अग्याता,
छमहु छमामदिर दोउ भ्राता || बालकाण्ड २८४
३२--विरक्ति के लिये
* भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुर्नाह,
सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस विरति ||अयोध्या० ३२६
३३-ज्ञान प्राप्ति के लिये
* छिति जल पावक गगन समीरा,
पंच रचित अति अधम सरीरा || किष्किंधा १०
३४--भक्ति प्राप्ति के लिये
* भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपा सिन्धु सुख धाम,
सोइ निज भगांत मोहि प्रभु देहु दया करि राम || उत्तर का०८
३५-श्री हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए
* सुमरि पवन सुत पावन नामू,
अपने बस करि राखे रामू || बालकाण्ड २५
३६--श्री सीतारामजी के दर्शन के लिए
* नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम,
लाहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम || बालकाण्ड १४६
३७--श्री सीताजी के दर्शन के लिए
* जनक सुता जग जननि जानकी,
अतिसय प्रिय करुना निधान की || बालकाण्ड दोहा १७
३८--श्रीरामजी को वश में करने के लिए
* केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान,
देखि भानु कुल भूषनहिं बिसरा सखिन्ह अपान || बालकाण्ड २३३
३९- प्रेम बढ़ाने के लिए
* सब नर करहिं परस्पर प्रीती,
चलहि स्वधर्म निरत श्रुति नीती || उत्तर कांड २०
४०-कातर की रक्षा के लिए
* मोर हित हरि सम नहिं कोऊ,
एहि अवसर सहाय सोइ होऊ || बालकाण्ड १३१
४१-विचार शुद्धि के लिए
* ताके जुग पद कमल मनावउँ,
जासु कृपां निरमल मति पावउ || बालकाण्ड १७
४२--भगवच्चिन्तन पूर्वक आराम से मरने के लिए
* रामचरन दृढ़ प्रीति करि, बालि कीन्ह तनु त्याग,
सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग || किष्किंधा दो- १०
४३-सब सुख प्राप्ति के लिए
* सुनहि बिमुक्त बिरत अरु बिषई,
लहहिं भगति गति संपति नई || उत्तर काण्ड १४
४४- कुशल क्षेम के लिए
* भुवन चारि दस भरा उछाहू,
जनक सुता रघुबीर बिवाहू || बालकाण्ड २६५
४५--ऋद्धि सिद्धि प्राप्त करने के लिए
* साधक नाम जपहिं लय लाए,
होहि सिद्ध अनिमादिक पाएँ || बालकाण्ड २१
४६--मोहित करने के लिए
* करतल बान धनुष अति सोहा,
देखत रूप चराचर मोहा || बालकाण्ड २०३
४७-भय से बचने के लिए
* पाहि पाहि रघुवीर गुसाई,
यह खल खाइ काल की नाई ।। लङ्काकाण्ड ८१
४८--अपवाद को दूर करने के लिए
* राम कृपा अवरेब सुधारी,
बिबुध धार भई गुनद गुहारी || अयोध्या० ३१६
४९-कार्य सिद्धि के लिए
* स्वयं सिद्ध सब काज नाथ मोहिं आदरु दियउ,
अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ || लङ्का १७
५०-आभूषण प्राप्त करने के लिए
* रामचरित चितामनि चारू,
संत सुमति तिय सुभग सिंगारू || बाल० ३१
५१--अकाल मृत्यु निवारण के लिए
* नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट,
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट || सुन्दर ३०
५२-वशीकरण के लिए
* जन मन मंजु मुकुर मल हरनी,
किए तिलक गुन गन बस करनी || बालकाण्ड १ दोहा से पूर्व
५३-तिजारी ज्वरादिके नाश के लिए
* त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन,
कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन || बाल० ३४
५४--वर्षा के लिए
* सोइ जल अनल अनिल संघाता,
हाइ जलद जग जीवन दाता || बालकाण्ड ६
५५- श्रीरामजी के प्रत्यक्ष दर्शन के लिए
* जो धनाथ हित हम पर नेह,
तौ प्रसत्र होइ यह बर देह || बालकाण्ड १८५
* जो सरूप बस सिव मन माहीं,
जेहि कारन मुनि जतन कराहीं || बालकाण्ड १८३
* जो भुसु डि मन मानस हसा,
सगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा || बालकाण्ड १४५
* देखहि हम सो रूप भरि लोचन,
कृपा करहु प्रनतारति मोचन || बालकाण्ड १४५
* इन चौपाइयों को पाठ के प्रारम्भ और अन्त में तथा बीच- बीच में प्रेमपूर्वक पढ़ें।
* श्रद्धा, विश्वास, सयम, ब्रह्मचर्य चौर चित्त की शुद्धि की बड़ी आवश्यकता है।
* सात्त्विक आहार अवश्य होना चाहिए।
* इस तरह से रहकर १०५ पाठ करना चाहिए ।
५६- श्री रामजी की पराभक्ति के लिए
* परि धीरज एक श्रालि सयानी,
सीता सन बोली गहि पानी || बालकाण्ड २३३
* इस चौपाई से पाठ प्रारम्भ करके उत्तर कांड तक और बालकांड से प्रारम्भ करके निम्नलिखित दोहें तक पाठ कर
समाप्त करे-
* हरि कटिपट पीत पर सुषमा सील निधान,
देखि भानुकूल भूषनहि विसरा सलिन्ह अपान || बालकांड से
५७ - भक्ति की वृद्धि के लिये
* सीता राम चरन रति मोरे,
अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे || अयोध्या० २०४
५८ - भगवद्दर्शन की व्याकुलता के लिए
* अगुन अखण्ड अनन्त अनादी,
जेहि चिहि परमारथ वादी || बालकाण्ड १४३
* उर अभिलाष निरंतर होई,
देखि नयन परम प्रभु सोई || बालकाण्ड १४३
५९- पाप नाश के लिये
* राम राम कहि जे जमुहाहीं,
तिन्हहि न पाप पु'ज समुहाहीं || अयोध्या० १६३
६०- वैराग्य के लिए
* मन करि विषय अनल बन जरई,
होइ सुखी जो एहि सर परई || बालकाण्ड ३४
६१- गुप्त मनोरथ सिद्धि के लिये
* सुनहु देव सचराचर स्वामी,
प्रनत पाल उर अन्तर जामी || सुन्दर० ४८
* मोर मनोरथ जानहु नीके,
बसहु सदा उर पुर सब ही के || बालकाण्ड २३५.
६२-शङ्कर जी की प्रसन्नता के लिये
* आसुतोष तुम अवढर दानी,
आरति हरहु दीन जनु जानो || अयोध्या० ४३
६३- मङ्गल के लिये
* मङ्गल भवन अमङ्गल हारी,
द्रवहि सो दसरथ अजिर बिहारी || बालकांड १११
६४- जीवन सुधार हेतु
* मोरि सुधारिहि सो सब भांती,
जासु कृपा नहि कृपां श्रघाती || बालकाण्ड २७
६५- तिजारी बुखार को दूर करने के लिए
* सुनु खगपति यह कथा पावनी,
त्रिविध ताप भव भय दावनी || उत्तर० १४
६६- पुत्र प्राप्ति के लिये दूसरी रीति
'* मातु दुलारइ' कहि प्रिय ललना * से प्रारम्भ करके उल्टा पाठ करें।
यह चौपाई बालकांड दोहा १६८ से पूर्व है और
* दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कहउ सतिभाउ,
चाहउँ तुमहि समान सत प्रभु सन कवन दुराउ || पर समाप्ति करें।
६७- श्री गिरिजा की प्रसन्नता के लिये
* जय जय गिरिवर राज किसोरी,
जय महेस मुख चंद चकोरी || बालकांड २३४
६८- नानफल के लिये
* सुनि समुह जन मुदित मन मज्जहि अति अनुराग,
लहहि चारिफल अछत तनु साधु समाज प्रयाग || बालकांड दोहा
६९ - उत्सव के लिए
* सिय रघुबीर बिबाहु, जे सप्रेम गावहि सुनहि,
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु, मङ्गलायतन राम जसु || बालकांड-३६१
७०- गङ्गाजी को प्रसन्न करने के लिये
* गङ्ग सकल मुद मङ्गल मूला,
सब सुख करनि हरनि सब सूला || अयोध्या ८६
७१-कृपा दृष्टि के लिये
* मामवलोकय पंकज लोचन,
कृपा बिलोकनि सोच विमोचन || उत्तरकांड ५०
७२-विवाह के लिये दूसरी रीति
* तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज संवारिकै || बाल० ३२४ छन्द २
इस छन्द से प्रारम्भ कर उल्टा पाठ करें।
* भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा ||- पर समाप्त करें।
७३-काम-वासना नाश के लिए
* जय सच्चिदानन्द जगपावन,
अस कहि चलेउ मनोज नसावन | बालकांड ३२४ छन्द १
७४-भव-भीर नाश के लिए
* मो सम दीन न दीन हित, तुम समान रघुबीर,
अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु विषम भव भीर || उत्तरकांड १३० (क)
७५-सब प्रकार की विपत्तियों को दूर करने के लिये तथा प्रत्येक कामना की पूर्ति के लिये
* कहइ रीछपति सुनु हनुमाना,
का चुप साधि रहेउ बलवाना || किष्किन्धा २६
* पवन तनय बल पवन समाना,
बुधि विवेक बिग्यान निधाना || किष्किन्धा० २६
* कवन सो काज कठिन जग माहीं,
जो नहिं होई तात तुम पाहीं | किष्किन्धा २६
* "इनका जप पहले करके सुन्दर कांड का पाठ करे।
* अन्त में फिर इनका जप करे।
* पाठ के पहले श्री महावीरजी की पूजा लाल सिन्दूर, लाल फल और लाल फूल से करे।
* प्रतिदिन एक ही प्रकार का फल-फूल होना चाहिए । तथा नियत समय पर ही रोज पाठ करे।
* ४० दिनों का अनुष्ठान है ।"
७६-ऋण मोचन मन्त्र कर्ज से छुटकारा पाने के लिये
* महावीर बिनवउ हनुमाना,
राम जासु जस आप बखाना || बालकांड १७
* पवन तनय बल पवन समाना,
बुधि विवेक विग्यान निधाना || किष्किन्धा २६
* कवन सो काज कठिन जग माहीं,
जो नहि होय तात तुम पाहीं || किष्किन्धा २६
७७-रक्षारेखा मन्त्र
* मामभि रक्षय रघुकुल नायक,
धृत वर चाप रुचिर कर सायक || लंका ११४ ख
७८-शत्रु नाश के लिये
* जाके सुमिरन ते रिपु नाशा,
नाम शत्रुहन वेद प्रकाशा ||
७९-मोह नाश के लिए
होय विवेक मोह भ्रम भागा,
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
८०-रोग नाश के लिए
* राम कृपा नाहिं सब रोगा,
जो यहि भांति बने संयोगा ||
८१ - कथा में श्रद्धा बढ़ाने के लिए
* हरि हर पद रति मति न कुतरकी,
तिन्ह कहें मधुर कथा रघुबर की ||
८२- यात्रा सिद्धि के लिए
* राम लखन कौशिक सहित,
सुमिरह कर पयान,
लक्ष्मी लाभ ले जगत यश,
मङ्गल सगुन प्रमान ||
८३-श्री रामचरितमानस की सिद्धि के लिये
* श्री रामचरितमानस के लगातार १०८ पाठ करने से यह सिद्ध हो जाता है और अपूर्व लाभ होता है ।
८४-दुर्भाग्य को दूर करने के लिये
* मन्त्र महामनि विषय ब्याल के,
मेटत कठिन कुश्रङ्क भाल के || लंका काण्ड ३१
८५-मोक्ष प्राप्ति के लिये
* सत्य संघ छांड़े सर लच्छा,
काल सर्प जनु चले सपच्छा || बालकाण्ड ६८
८६-संतान पुत्र के लिये
* मङ्गल मूरति मारुतिनन्दन,
सकल अमङ्गल मूल निकन्दन।
* कवन सो काज कठिन जगमाहीं,
जो नहीं होय तात तुम पाहीं।
* कहा रीछपति सुन हनुमाना,
का चुप साध रहा बलवाना।
* पवन तनय बल पवन समाना,
बुधि विवेक विज्ञान विधाना।
* कोमल चित कृपालु रघुराई,
कपि केहि हेतु घरी निठुराई।
* जो प्रसन्न मो पर मुनिराई,
पुत्र देहु बल में अधिकाई।
* जबहि पवन सुत यह सुधिपाई,
चले हृदय सुमिर रघुराई।
* राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई,
करै अन्यथा अस नहि कोई।
* पुरवहु मैं अभिलाष तुम्हारा,
सत्य सत्य प्रण सत्य हमारा।
* जेहि विधि प्रभु प्रसन्न मन हाई,
करुणासागर कीजे सोई।
* चरण कमल बन्दों तिन केरे,
पुरवहु सकल मनोरथ मेरे।
* देखि प्रीति सुन वचन अमोले,
एवमस्तु करुणानिधि बोले।
* दशरथ पुत्र जन्म सुनि काना,
मांनहु ब्रह्मानन्द समाना।
* जाकर नाम सुनत शुभ होई,
मोरे गृह द्यावा प्रभु सोई।
* प्रभु की कृपा भयऊ सब काजू,
जन्म हमार सुफल भा श्राजू ||
८७- विवाह तथा नौकरी धन्धा के लिये
* विश्व भरण पोषण कर जोई,
ताकर नाम भरत अस होई।
* जिमि सरिता सागर मंह जाहीं,
जद्यपि ताहि कामना नाहीं।
* तिमि सुख-सम्पति बिनहि बुलाये,
धर्मशील पहें जाहि सुभाये।
* जिनकर नाम लेत जग मांही,
सकल श्रमङ्गल मूल नसांही।
* करतल होहिं पदारथ चारी,
तेहि सिय राम कहेऊ कामारी।
* जाकर जेहि पर सत्त्य सनेहू,
सो तेहि मिहिं न कछु संदेहू।
* सो तुम जानहु अन्तरयामी,
पुरबहु मोर मनोरथ स्वामी।
* सफल मनोरथ होहिं तुम्हारे,
राम लखन सुनि भये सुधारे।
* जबते राम ब्याहि घर आये,
नित नव मङ्गल मोद बधाये।
* मङ्गल भवन अमङ्गल हारी,
उमा सहित जेहि जपत पुरारी ||
८८-सौभाग्य तथा सुख प्राप्ति के लिये
* भव भेषज रघुनाथ जसु,
सुनहि जे नर अरु नारि,
तिन्हकर सकल मनोरथ,
सिद्ध करहि त्रिशरारि।
* क्षेमकरी कर क्षेम विशेषी,
श्यामा वाम सुतरु पर देखी।
* पुत्रवती युवती जग सोई,
रघुपति भक्त जासु सुत होई।
* अचल होय अहिबात तुम्हारा,
जब लगि गंग जमुन जल धारा।
* धारहि बार लाइ उर लीन्हीं,
धरि धीरज सिख आशिश दीन्हीं।
* जो रघुपति चरणन चित लावे,
तेहि सम धन्य न आन कहावे।
* यह भांति गौरि अशीश सुन,
सिय सहित हिय हर्षित अली।
* तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि,
मुदित मन मन्दिर चली ||
८९- कन्या को वर मिलने के लिये
* कन्या को १६ वर्ष की आयु से प्रातःकाल पाठ करना अचिंत उत्तम होगा।
* सिय रघुवीर विवाह,
जो सप्रेम गावहि सुर्नाह,
तिन्ह कर सदा उछाहु,
मङ्गलायतनु राम जसु ॥
* कोमल चित अति दीन दयाला,
कारण बिनु रघुनाथ कृपाला।
* जानहु ब्रह्मचर्य हनुमन्ता,
शिव स्वरूप सोश्री भगवन्ता।
* जो रघुपति चरणन् चित लावै,
तेहि सम धन्य न थान कहावै।
* राम कथा सुन्दर करतारी,
संशय विहंग उड़ावन हारी ||
* उमा रमा ब्रह्माणि बन्दिता,
जगदम्बा संतति श्रनन्दिता।
* पूजा कीन्ह अधिक अनुरागा,
निज अनुरूप सुभग वर मांगा।
* सादर सिय प्रसाद उर घरेऊ,
बोली गौरि हर्ष उर भरेऊ।
* जाको जापर सत्य सनेहू,
सो ताहि मिलहि न कछु संदेहू।
* सुनि सिय सत्त्य अशीश हमारी,
पूजहिं मन कामना तुम्हारी।
* पति अनुकूल सदा रह सीता,
शोभा खान सुशील विनीता।
* रंगभूमि पर जब सिय पगधारी,
देखि रूप मोहे नर नारी।
* भुवन चारुदश भरेऊ उछाहू,
जनक सुता रघुवीर बिवाहू।
* शकुन विचार धरीमन धीरा,
अब मिलिहि कृपालु रघुवीरा।
* तो जानकिहिं मिलिहि वर एहू,
नाहिन आलि यहां संदेहू।
* सो तुम जानहु अन्तरयामी,
पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी।
* मन्त्र महामनि विषय ब्याल के,
मेटत कठिन कुअङ्क भाल के।
* अशरण शरण विरद संभारी,
मोहि जनि तजह भक्त हितकारी।
* मन जाहि राचौं मिलहि,
सो वर सहज सुन्दर सांवरो।
* करुणानिधान सुजान,
शील सनेह जानत रावरो।
९० -सन्तान नष्ट न होने का उपाय
* जिनके सन्तान पुत्र या पुत्री उत्पन्न होते ही नष्ट हो जाती हैं उन्हें चाहिये कि १ दिन रात्रि के दस बजे रक्षा रेखा मंत्र की १०८ श्राहुति देकर सिद्ध करलें विधि पीछे, लिखी गई है मंत्र यह है।-
* मामभिरक्षय रघुकुल नायक,
धृत वर चाप रुचिर कर सायक।
* पुनः यह मंत्र बोलकर गेरू से गोल रेखा खींचे सवा गज लम्बी चौड़ी उसमें नवजात शिशु को साफ शुद्ध करके रखे जमीन पर वस्त्र बिछा सकते हैं ।
* पुनः अनार की लकड़ी की कलम बनाकर तथा केसर घोल कर उसकी जीभ पर श्रीराम लिखद और रक्षा रेखा वाला मंत्र भोज पत्र के कागज पर लिखकर केसर से ताबीज में भर कर गले में बांध दें प्रभु उसकी रक्षा कर मे।
९१- गर्भ में ही अकाल मृत्यु का उपाय*
* गभिणी को चाहिए कि रक्षा रेखा मंत्र बोलकर ११ बार पुनः उस जल से स्नान किया करे।
९२- अकाल मृत्यु निवार्णार्थ
* नाम पाहरु दिवस निशि,
ध्यान तुम्हार कपाट,
लोचन निज पद जंत्रित,
जाहि प्रान केहि बाट।
इस मंत्र की नित्य एक माला का जाप किया करें ।
९३- शोक दूर करने के लिये
* राम राज्य धैठे त्रय लोका,
हर्षित भये गये सब शोका।
९४-दुःख दूर करने के लिये
* रामायण सुरतरु की छाया,
दुःख भये दूर निकट जो आया।
९५-रोग नाश के लिये काजल
* किसी प्रकार का रोग क्यों न हो आप सायंकाल में यथाशनि शौच स्नान करके पवित्र हो जाइये।
* सामने घी का दीपक जलान रख लीजिए।
* शुद्ध, पात्र में जल भर कर रख लीजिए।
* तुलना माला पर निम्नलिखित मंत्र का १०८ बार जाप कीजिए-
* दैहिक दैविक भौतिक ताप्ता,
राम राज नहि काहहि व्यापा ।
* पश्चात् दीपक से कैज्जल (काजल) बना लीजिये।
* जल रोगी को बार-बार पिलाते रहिये 'और काजल का प्रतिदिन लगाइए।
* रोगों का नाश होता है।
इति श्री राम चरित मानस सिद्ध मंत्र प्रयोग मंत्र ||
श्री राम चरित मानस आरती का वाचन जरूर करे!