श्रीमद भगवत गीता पाठ की विधि | Shrimad Bhagwat Geeta

Shrimad Bhagwat Geeta Paath Vidhi (ब्रम्हांड पुराण से)

Shrimad Bhagwat Geeta एक दिव्य ग्रंथ है जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया अद्भुत ज्ञान है। यह ग्रंथ केवल युद्ध के मैदान का संवाद नहीं है, बल्कि जीवन को सही ढंग से जीने की कला सिखाता है। यदि आप श्रीमद भगवत गीता का पाठ नियमित रूप से करना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए है।


Shrimad Bhagwat Geeta

श्री गीताजी के पाठ की विधि ( ब्रह्माण्ड पुराण से )

* नित्य प्रार्थना *

* हे पूरण परमात्मा,
शुद्ध होंय पापात्मा,
विश्व बने धर्मात्मा,
हम सब तेरी आत्मा ||

* श्री कृष्ण का उपदेश *

* सब धर्म लौकिक त्याग कर,
मेरी शरण ले लीजिये,
निष्पाप कर दूंगा तुम्हें,
चिन्ता न किञ्चित् कीजिये ||

* मम भक्त मत्पर का तुरत,
कट जाय पाप अशेष है,
निष्पाप मुझको पाय है,
यह कृष्ण का उपदेश है ||

श्रीमद भगवत गीता महिमा

* गीता हृदय भगवान का,
सब ज्ञान का शुभ सार है,
इस गुद्ध गीता ज्ञान से ही,
चल रहा संसार है ||

* गीता परम विद्या सनातन,
सर्व शास्त्र प्रधान है,
परब्रह्म रूपी मोक्षकारी,
नित्य गीता ज्ञान है ||

* यह मोह माया कष्टमय,
तरना जिसे संसार हो,
वह बैठ गीता नाव में,
सुख से सहज में पार हो ||

* संसार के सब ज्ञान का,
यह ज्ञान मय भण्डार है,
श्रुति उपनिषद् वेदान्त,
ग्रन्थों का महा शुभ सार है ||

* गाते जहां जन गीत गीता,
नित निरन्तर प्रेम से,
रहते वहीं सुखकन्द नटवर,
नन्द-नन्दन प्रेम से ||

* गाते जहां जन गीत गीता,
प्रेम से धर ध्यान हैं,
तीरथ वहीं भव के सभी,
शुभ शुद्ध और महान हैं ||

* धरते हुए जो ध्यान गीता,
ज्ञान का तन छोड़ते,
लेने उन्हें माधव मुरारी,
आप ही उठ दौड़ते ||

* सुनते सुनाते नित्य जो,
लाते इसे व्यवहार में,
पाते परम पद,
ठोकरें खाते नहीं संसार में ||

श्री गीताजी की महिमा

* गीता सुगीताकर्त्तव्या,
किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः,
या स्वयं पद्मनाभस्य,
मुख पद्माद्विनिस्सृता ||

भावार्थः- गीताजी का भली भांति अध्ययन कर लेने के पश्चात् और शास्त्रों के विस्तार से लाभ ही क्या ?
गीता समस्त शास्त्रों का सार है।

प्रश्न - संसार भर में आकार में सबसे छोटी पुस्तक और जिसमें सबसे ऊंचा ज्ञान हो वह क्या है ?

उत्तर-
* गीता क्योंकि केवल ७०० श्लोकों के इस छोटे से ग्रन्थ में भगवान् ने सारे संसार का अगाध ज्ञान भर
दिया है।

* अध्यात्म-शास्त्र (Metaphysics) ग्राचार शास्त्र (Ethics) समाज-शास्त्र (Sociology) धर्म-
शास्त्र (Theology) मनोविज्ञान (Psychology) विज्ञान (Science) आदि सभी का इसमें नाम मात्र को
ही नहीं,

* अपितु सक्षिप्त में पूरा-पूरा विवेचन है, जिसके आगे मानव-ज्ञान की गति न पहुंची है न पहुँचेगी।
* वेद प्रतिपादित कर्म, उपासना और ज्ञान काण्डों का रहस्य इसमें विशद रूप से दिखलाया गया है।
* गीता में संसार को छोड़ देने का उपदेश नहीं वरन् कमलवत् संसार में रह कर सब कुछ करते हुए भी निलिप्त रहने का उच्च आदर्श है।
* अतः यही कारण है कि विश्व के सभी मतों के व्यक्ति श्री गीताजी को प्रचुर मात्रा में अपना रहे हैं।

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