श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र | Shri Siddha Kunjika Stotram

Shri Siddha Kunjika Stotram In Hindi

श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का सम्पूर्ण संस्कृत पाठ हिन्दी अर्थ सहित। श्री चंडी पाठ से पूर्व इसका पाठ विशेष फलदायक माना गया है। देवी उपासना में सिद्धि दिलाने वाला स्तोत्र श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र | Shri Siddha Kunjika Stotram अत्यंत गोपनीय और प्रभावशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र चंडी पाठ का "संक्षिप्त और साररूप" माना जाता है। इसका नियमित पाठ साधक को माँ चामुंडा की कृपा से दिव्य शक्तियाँ, भय से मुक्ति और सिद्धि प्रदान करता है।


Siddha Kunjika Stotram

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र संस्कृत | श्री सिद्धकुजिकास्तोत्रम्

शिव उवाच
* शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुजिंकास्तोत्रमुत्तमम्,
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ||१||

* न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्,
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ||२||

* कुजिंकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्,
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ||३||

* गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति,
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्,
पाठमात्रेण संसिद्धयेत् कुजिंकास्तोत्रमुत्तमम् ||४||

अथ मन्त्रः

*ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
* ॐ ग्लौं हुँ क्लीं जूं सः।
* ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल,
* ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हँ सँ लँ सँ फट् स्वाहा ||

* नमस्ते रुद्ररूपिण्ये नमस्ते मधुमर्दिनि,
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ||१||

* नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ||२||

* जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व में,
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ||३||

* कींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते,
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ||४||

* विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ||५||

* धां धीं हूं धूर्जटः पत्नी वां वीं दूं वागधीश्वरी,
क्रां क्रीं क्रू कालिका देवि शां शीं शू में शुभं कुरु ||६||

* हुँ हुँ हुँकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी,
भ्राँ भ्रीं भुँ भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ||७||

* अं कंचं टं तं पं यं शं वीं हुँ ऐं वीं हं क्षं,
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।
*पां पीं पूँ पार्वती पूर्णा खां खीं खूँ खेचरी तथा ||८||

* सां सीं सूँ सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे,
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे ।
* अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ||९||

* यस्तु कुञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्,
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ||१०||

श्री सिद्धकुंजिका स्तोत्रम् हिंदी में

* शिव जी बोले-देवी! सुनो।
* मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है।
* कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है।
* केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। (यह कुंजिका) अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है||

* हे पार्वती! स्वयोनि की भांति प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (अभिचारिक) उद्देश्यों को सिद्ध करता है।
* मन्त्र -ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ||

* मंत्र में आये बीजों का अर्थ जानना न संभव है, न आवश्यक और न ही वांछनीय।
* केवल जप पर्याप्त है।हे रुद्ररूपिणी! तुम्हे नमस्कार। हे मधु दैत्य को मारने वाली! तुम्हे नमस्कार है।
* कैटभविनाशिनी को नमस्कार।
* महिषासुर को मारने वाली देवी! तुम्हे नमस्कार है।
* शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली! तुम्हे नमस्कार है।
* हे महादेवी! मेरे जप को जाग्रत और सिद्ध करो।

* ‘ऐंकार’ के रूप में सृष्टिरूपिणी, ‘ह्रीं’ के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली।
* क्लीं के रूप में कामरूपिणी (तथा अखिल ब्रह्माण्ड) की बीजरूपिणी देवी! तुम्हे नमस्कार है।
* चामुंडा के रूप में तुम चण्डविनाशिनी और ‘यैकार’ के रूप में वर देने वाली हो।
* ’विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो।(इस प्रकार ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) तुम इस मन्त्र का स्वरुप हो ||

* ’धां धीं धूं’ के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वूं’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो।
* ‘क्रां क्रीं क्रूं’ के रूप में कालिकादेवी, ‘शां शीं शूं’ के रूप में मेरा कल्याण करो।
* ’हुं हुं हुंकार’ स्वरूपिणी, ‘जं जं जं’ जम्भनादिनी, ‘भ्रां भ्रीं भ्रूं’ के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी! तुम्हे बार बार प्रणाम ||

* ’अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं’ इन सबको तोड़ो और दीप्त करो, करो स्वाहा।
* ‘पां पीं पूं’ के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो।
* ‘खां खीं खूं’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो।
* ’सां सीं सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिए सिद्ध करो ||

* यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए।
* हे पार्वती ! इस मन्त्र को गुप्त रखो। हे देवी ! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।

इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में शिव पार्वती संवाद में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ||

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