श्री बटुक भैरव स्तोत्र | Shri Batuk Bhairav Stotra
Shri Batuk Bhairav Mool Mantra
श्री बटुक भैरव स्तोत्र हिन्दू धर्म में अत्यंत शक्तिशाली और पूज्यनीय स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान शिव के रौद्र रूप, श्री बटुक भैरव को समर्पित है। बटुक भैरव को संकटमोचक, तांत्रिक साधनाओं के रक्षक, और नकारात्मक शक्तियों के नाशक के रूप में पूजा जाता है। श्री बटुक भैरव स्तोत्र | Shri Batuk Bhairav Stotra विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो जीवन में भय, रोग, बाधाएं, शत्रु संकट या मानसिक अस्थिरता का सामना कर रहे हैं।☆श्रीमदापदुद्धारक बटुकभैरव स्तोत्रम् ☆
☆अथ मूलमन्त्र ☆
* ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ *१. भैरव,
२. भूतनाथ,
३. भूतात्मा,
४. भूतभावन,
५. क्षेत्रज्ञ ||
६. क्षेत्रपाल,
७. क्षेत्रद्,
८. क्षत्रिय,
९. विराट्,
१०. श्मशानवासी ||
११. मांसाशी,
१२. खर्पराशी,
१३. खरान्तक,
१४. रक्तप,
१५. पानप ||
१६. सिद्ध,
१७. सिद्धिद,
१८. सिद्धसेवित,
१९. कङ्कालः,
२०. कालशमन ||
२१. कलाकाष्ठातनु,
२२. कवि,
२३. त्रिनेत्र,
२४. बहुनेत्र,
२५. पिङ्गल लोचन ||
२६. शूलपाणि,
२७. खङ्गपाणि,
२८. कङ्काली,
२९. धूम्रलोचन,
३०. अभीरु ||
३१. भैरवीनाथ,
३२. भूतप,
३३. योगिनीपति,
३४. धनद,
३५. धनहारी ||
३६. धनवान्,
३७. प्रतिभानवान्,
३८. नागहार,
३९. नागकेश,
४०. व्योमकेश ||
४१. कपालभृत्,
४२. काल,
४३. कपालमाली,
४४. कमनीय,
४५. कलानिधि ||
४६. त्रिलोचन,
४७. ज्वलन्नेत्र,
४८. त्रिशिखी,
४९. त्रिलोकप,
५०. त्रिनेत्रतनय ||
५१. डिम्भ,
५२. शान्त,
५३. शान्तजनप्रिय,
५४. बटुक,
५५. बटुवेष ||
५६. खट्वाङ्गवरधारक,
५७. भूताध्यक्ष,
५८. पशुपति,
५९. भिक्षुक,
६०. परिचारक ||
६१. धूर्त,
६२. दिगम्बर,
६३. शूर,
६४. हरिण,
६५. पाण्डुलोचन ||
६६. प्रशान्त,
६७. शान्तिद,
६८. शुद्ध,
६९. शङ्करप्रियबान्धव,
७०. अष्टमूर्ति ||
७१. निधीश,
७२. ज्ञानचक्षु,
७३. तपोमय,
७४. अष्टाधार,
७५. षडाधार ||
७६. सर्पयुक्त,
७७. शिखीसखा,
७८. भूधर,
७९. भूधराधीश,
८०. भूपति ||
८१. भूधरात्मज,
८२. कङ्कालधारी,
८३. मुण्डी,
८४. आन्त्र यज्ञोपवीतक,
८५. जृम्भण ||
८६. मोहन,
८७. स्तम्भी,
८८. मारण,
८९. क्षोभण,
९०. शुद्ध ||
९१. नीलाञ्जनप्रख्यदेह्र,
९२. मुण्डविभूषित,
९३. बलिभुक्,
९४. बलिभुङ्नाथ,
९५. बाल ||
९६. बालपराक्रम,
९७. सर्वापत्तारण,
९८. दुर्ग,
९९. दुष्टभूतनिषेषित,
१००. कामी ||
१०१. कलानिधि,
१०२. कान्त,
१०३. कामिनीवशकृत्, वशी,
१०४. जगद्रक्षाकर,
१०५. अनन्त ||
१०६. अनन्त,
१०७. मायामन्त्रौषधीमय,
१०८. सर्वसिद्धिप्रद,
१०९. वैद्य,
११०. प्रभु,
१११. विष्णु ||
|| अथ श्री बटुक भैरव मूल मंत्र समापतम ||