जीवन पर सर्वश्रेष्ठ सुविचार | jeevan ka gyan
jivan Ka Gyan In Hindi
"जीवन एक अवसर है, इसे व्यर्थ न जाने दें" मनुष्य का जीवन अनमोल है। हर क्षण हमें कुछ सिखाता है, और अनुभवों से मिली सीख ही हमें "जीवन का ज्ञान" प्रदान करती है। इस लेख में हम आपके लिए कुछ ऐसे श्रेष्ठ जीवन पर सर्वश्रेष्ठ सुविचार | jeevan ka gyan (Best Quotes on Life in Hindi) लेकर आए हैं जो न केवल आपको प्रेरित करेंगे, बल्कि आपके सोचने का तरीका भी बदल देंगे।
वास्तु विवरण
१. मकान का मुख पूर्व की ओर होना चाहिये।२. घर के पूर्व दिशा में खिड़कियाँ और दरवाजे होने चाहिये।
३. चागका विक्षिण में हो।
४. विद्यानि को किरा पूर्वउन्मुखी होकर ||
५. घर के सीढ़ियों के नीचे थान सोरी।
६. घर के सामने तुलसी तथा मनी प्लांट के पौधे उगायें।
७. दक्षिण-पश्चिम की दीवारें उत्तर-पूर्व की दीवारों से मोटी होनी चाहिये।
८. नये घर के निर्माण से पहले भूमि पूजन की धार्मिक रीति करनी चाहिये ||
९. से पहले गृह प्रवेश पूजा करवानी चाहिये।
१०. सीढ़ियों के नीचे पूजा कक्ष व शौयालय न रखें।
११. मकान या प्लाट के मध्य में कुआँ अशुभ है।
१२. मारी बंत्र उपकरण तम्या मशीनरी कारखाने के दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम में लगाने चाहिये।
कुछ ध्यान रखने योग्य बातें
* गृहेलिंगद्वयं नार्च्य गणेशत्रितयं तथा,शंखद्वयं तथा सूर्यौ नार्च्यौ शक्तित्रयं तथा ||
अर्थात दो शालिग्राम नहीं पूजें। खण्डित, फूटे हुये शालिग्राम अशुभ है।
* शालिकमाः समाः पूज्याः रामेषु द्वितीया नहि,
खण्डिता स्फुटितावापि शालिग्राम शिला शुभा ||
अर्थात् घर में दो शिवलिग, तीन गणपति की मूर्तियों, दो शंख व खण्डित मूर्ति की पूजा नहीं करें।
* नामातेरर्थविद् विष्णुं न तुलस्या गणाधिपम्।
न दूर्वया यजेद्देवी बिल्वपत्रे भास्करम ||
अर्थात् विष्णु को अक्षत से, गणेश को तुलसी से, देवी को दूर्वा से. सूर्य को बिल्यापा से पूजा नहीं करें।
* शिग गवय श्रृंगेण केशवं शंख वारिणा,
विध्नेशं ताम्र पात्रेण स्वर्णन जगदम्बिकाम ||
अर्थात् शिव का अभिषेक गौ श्रंग से, विष्णु का शंख से, गणपति का ताम्र पात्र से, जगदम्बिका का स्वर्ण पात्र से, अभिषेक करें।
* उन्नतर्क पुष्पंच विष्णोर्यज्यं सदा बुधः फलं स कृमि संयुक्तुंप्रयत्नाद् विवर्जयेत् ||
अर्थात् विष्णु की पूजा धतूरे के फल से न करें। कृमि युक्त फल व सड़े फल बगवान को नहीं चढ़ायें।
* अर्क पुणं च गर्भ च बिल्वीदल समन्वतं,
अक्षता खण्डिता चैव, शिव पूजा विवर्जयेत ||
अर्थात् आक के पुष्पों गर्भ व दल (डंठल) सहित बिल्व पत्र, खण्डित चावल शिवपूजा में वर्जित है।
* एका चण्डा सेः सा तिरवः कार्या विनायके,
हरेक्षतस्त्रः कर्तव्याः शिवस्यार्थ प्रदक्षिणा ||
अर्थात् चण्डी की एक. सूर्य की सात गणपति की तीन, विष्णु की चार, शिव की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिये।
* अस्नात्या तुलसीधित्वायः पूजा करते नरथ सोऽपराधी भवेत्सत्यं तत्सर्व निष्फलम् भवेत्।
स्नान किये बिना जो तुलसी पत्र तोड़कर उससे विष्णु की पूजा करता है, यह निष्फल होती है, तथा वह अपराधी होता है।
* वहाँ लक्ष्मी जी स्वयं जाती है
जिस घर में रहने वाले सदाचारी होते हैं सफाई से रहते हैं, कोमल और मधुर वाणी बोलते हैं और ब्यापार या खेती जैसे कार्यों में मन लगाए रखते हैं, जो कभी अंधेरे घर में शयन न करते हों। वहाँ लक्ष्मी जी स्वयं चलकर जाती है* जिन्हें लक्ष्मी जी छोड़ जाती है
जो मैले कपड़े पहनता है, दांतों की सफाई नहीं करता, बहुत ज्यादा ठूस-ठूसकर खाता है, कठोर वाणी बोलता है, सूरज उगने और छिपने के समय सोता है, जो मनुष्य वस्त्र रहित स्त्री पर दृष्टि डालता है, निरंतर हाथ से त्रण तोड़ता है, नाखूनों से भूमि पर लिखता है, चरणों को अशुद्ध रखता है, बालों को रूखा रखता है निवस्त्र हो सोता है, भोजन के समय बड़े ग्रास का ग्रहण करता है, जोर से हंसता है, अपनी देह व आसान को बजाता है, ऐसे व्यक्ति को लक्ष्मी जी छोड़कर चली जाती हैं, भले ही वह भगवान श्री हरि क्यों न हो।* आदमी की पहचान
*आश्रय देने पर आदमी सिर पर चढ़ जाता है।* आदर करने पर आदमी खुशामद समझता है।
*उपकार करने पर आदमी अस्वीकार करता है।
* विश्वास करने पर आदमी हानि पहुँचाता है।
* क्षमा करने पर आदमी दुर्बल समझता है।
भयभीत नहीं निर्भय रहें
* एक परम सिद्ध महात्मा प्रातः भ्रमण के लिए आश्रम से बाहर निकले। प्रातः ब्रम्ह मुहूर्त की अमृत बेला थी और सूर्योदय हुआ नहीं था सो सब तरफ अन्धकार था। उस अन्धकार में, महात्मा ने किसी काली छाया को बस्ती की तरफ जाते देखा तो महात्मा पुकारा-* कौन है, किधर जा रहा है?
* वह काली छाया रुकी और प्रणाम करते हुये बोली-
* हे महाजन !
* आप निस्सन्देह कोई दिव्यचक्षु प्राप्त सिद्ध महान आत्मा है तभी मुझे देख सके क्योंकि मनुष्य योनि का प्राणी तो मुझे देख पाने वाली दृष्टि रखता ही नहीं है।
* मै मृत्यु हूँ और इस बस्ती में जा रही हूँ। वहाँ प्लेग रोग फैल रहा है और जीवात्माओं को ले जाने का आदेश मिला है मुझे। इतना कहकर प्रणाम किया और बस्ती की तरफ चली गई।
* महात्मा भ्रमण के लिए चल दिये। शाम तक मौत लौटने लगी तो उसका फिर से महात्मा का सामना हो गया।
* महत्मा ने उलाहना दिया - तुमने तो सुबह कहा था कि हजार जाने ले जाओगी पर हमने सुना है कि तीन हजार से ज्यादा लोग मरे हैं।तुम्हें भी इस मृत्युलोक की हवा लग गई क्या?
* मृत्यु हाथ जोड़कर बोली- हे तात श्री ! ऐसा न कहें। मैंने तो हजार लोगों को ही मारा है बाकी तो भय के कारण मारे गये, मैंने नहीं मारा उनको।
* भयभीत लोग अधमरे तो होते ही हैं। ज्यादा भयभीत हो गये और बेमौत मारे गये।
* इसलिए हमेशा भयभीत नहीं निर्भय रहें।