श्री नारायण कवच | Shri Narayan Kavach Lyrics

Shri Narayan Kavach Lyrics In Hindi

श्री नारायण कवच भगवान विष्णु का एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जो नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से विष्णु भक्तों द्वारा सुरक्षा और शांति के लिए पाठ किया जाता है।नारायण कवच का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण के छठे स्कंध में मिलता है। यह कवच भगवान विष्णु के अनंत शक्तियों का आह्वान करता है और भक्त को हर प्रकार के भय और संकट से मुक्त करता है। जो साधक नित्य इसका पाठ करता है, उसे सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है और ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है।


Shri Narayan Kavach Lyrics

श्री नारायण कवच हिंदी में

* भगवान् श्रीहरि गरुड़ जी की पीठ पर अपने चरण-कमल रखे हुए हैं। अणिमादि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कर रही हैं। आठ हाथों में शङ्ख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष और पाश (फंदा) धारण किये हुए हैं। वे ही ॐकारस्वरूप प्रभु सब प्रकार से सब ओर से मेरी रक्षा करें।

* मत्स्यमूर्ति भगवान् जल के भीतर जल जन्तुओं से औरवरुण के पाश से मेरी रक्षा करें। माया से ब्रह्मचारी का रूप धारण करने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्री त्रिविक्रम भगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें। जिनके घोर अट्टहास करने पर सब दिशाएँ गूंज उठी थीं और गर्भवती दैत्य-पत्नियों के गर्भ गिर गये थे, वे दैत्ययूथ पतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें।

* अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में, परशुराम जी पर्वतों के शिखरों पर और लक्ष्मण जी के सहित भरत के बड़े भाई भगवान्रा मचन्द्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें। भगवान् नारायण मारण-मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें।

* ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से, योगेश्वर भगवान दत्तात्रेय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धनों से मेरी रक्षा करें। परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान्मार्ग में चलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान् कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें।

* भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से, जितेन्द्रिय भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से, यज्ञभगवान् लोकापवाद से, बलराम जी मनुष्यकृत कष्टों से और श्रीशेष जी क्रोधवश नामक सर्पों के गण से मेरी रक्षा करें। भगवान् श्रीकृष्ण द्वैपायन से, व्यास जी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखण्डियों और प्रमाद से मेरी रक्षा करें।

* धर्म-रक्षा के लिये महान् अवतार धारण करने वाले भगवान् कल्कि पापबहुल कलिकाल के दोषों मे मेरी रक्षा करें। प्रातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा लेकर, कुछ दिन चढ़ जाने पर भगवान् गोविन्द अपनी बाँसुरी लेकर, दोपहर के पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर को भगवान् विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें।

* तीनो पहर में भगवान् मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें। सायंकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बाद हृषीकेश, अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्धरात्रि के समय अकेले भगवान पद्मनाभ मेरी रक्षा करें। रात्रि के पिछले पहर में श्रीवत्सलाञ्छन श्रीहरि, उषाकाल में खड्गधारी भगवान् जनार्दन, सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण संध्याओं में कालमूर्ति भगवान विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें।

* सुदर्शन! आपका आकार चक्र (रथ के पहिये) की तरह है। आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है। आप भगवान् की प्रेरणा से सब ओर घूमते रहते हैं। जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूस को जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रुसेना को शीघ्र-से-शीघ्र जला दीजिये।

* कौमौदकी गदा ! आपसे छूटने वाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है। आप भगवान् अजित की प्रिया हैं और मैं उनका सेवक हूँ। इसलिये आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये तथा मेरे शत्रुओं को चूर-चूर कर दीजिये।

* शङ्ख श्रेष्ठ ! आप भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा फूंकने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहाँ से झटपट भगा दीजिये। भगवान् की श्रेष्ठ तलवार! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है।

* आप भगवान् की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दीजिये। भगवान् की प्यारी ढाल ! आपमें सैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं। आप पापदृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखें बंद कर दीजिये और उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये।

* सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे) आदि केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्पादि रेंगने वाले जन्तु दाढ़ोंवाले हिंसक पशु, भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियों से हमें जो-जो भय हो और जो-जो हमारे मङ्गल के विरोधी हों; वे सभी भगवान्
के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जायें।

* बृहद, रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान् गरुड़ और विष्वक्सेन जी अपने नामोच्चारण के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचायें।

* श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि इन्द्रिय, मन और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से बचायें। जितना भी कार्य अथवा कारणरूप जगत् है, वह वास्तव में भगवान् ही हैं-इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जायें।

* जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान् का स्वरूप समस्त विकल्पों-भेदों से रहित है, फिर भी वे अपनी माया-शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं। यह बात निश्चित रूप से सत्य है।

* इस कारण सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान् श्री हरि सदा-सर्वत्र सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें। जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं, वे भगवान् नृसिंह दिशा-विदिशा में, नीचे-ऊपर, बाहर-भीतर सब ओर हमारी रक्षा करें।

* देवराज इन्द्र!  मैंने तुम्हें यह नारायणकवच सुना दिया। इस कवच से तुम अपने को सुरक्षित कर लो। बस, फिर तुम अनायास ही सब दैत्य-यूथपतियों को जीत लोगे। इस नारायणकवच को धारण करने वाला पुरुष जिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छू देताहै. यह तत्काल समस्त भयों से मुक्त हो जाता है।

* जो इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेता है. उसे राजा, डाकू, प्रेत. पिशाचादि और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का भय नहीं होता। देवराज! प्राचीनकाल की बात है, एक कौशिक गोत्री ब्राह्मण ने इस विद्या को धारण करके योगधारणा से अपना शरीर मरुभूमि में त्याग दिया।

* जहाँ उस ब्राह्मण का शरीर पड़ा था, उसके ऊपर से एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथ विमान पर बैठकर निकले। वहाँ आते ही वे नीचे की ओर सिर किये विमानसहित आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े। इस घटना से उनके आश्चर्य की सीमा न रही।

* जब उन्हें वालखिल्य मुनियों ने बताया कि यह नारायणकवच धारण करने का प्रभाव है, तब उन्होंने उस ब्राह्मण देवता की हड्डियों को ले जाकर पूर्ववाहिनी सरस्वती नदी में प्रवाहित कर दिया और फिर स्नान करके वे अपने लोक को गये।

* श्री शुकदेव जी कहते हैं-परीक्षित् ! जो पुरुष इस नारायणकवच को समय पर सुनता है और जो आदरपूर्वक इसे धारण करता है, उसके सामने सभी प्राणी आदर से झुक जाते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है।

*  परीक्षित्! शतक्रतु इन्द्र ने आचार्य विश्वरूप जी से यह वैष्णवी विद्या प्राप्त करके रणभूमि में असुरों को जीत लिया और वे त्रैलोक्यलक्ष्मी का उपभोग करने लगे।

भगवान विष्णु नारायण का विशेष मंत्र

उग्र वीरम् महाविष्णुम्,
ज्वलन्तम् सर्वतोमुखम्,
नरसिंह भीषणम् भद्रम्,
मृत्युमृत्युम् नमाम्यहम् ||

|| इति श्री नारायण कवच सम्पूर्णम ||

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