श्री राधा अष्टमी व्रत कथा | Shri Radha Ashtami Vrat Katha
radha ashtami ka vrat kaise karen
श्री राधा अष्टमी का व्रत करने के लिए सुबह उठकर स्नान करें और फिर मन में संकल्प लेकर पूजा ध्यान की कामना करें। इस दिन पूरे दिन व्रत रखें और सिर्फ़ एक बार फलाहार करें। फूल, फूल की माला, रोली, अक्षत, चंदन, सिंदूर, सुगंध, धूप, दीपक, फल, मिठाई, राधा रानी की पोशाक, आभूषण, इत्र, पंचामृत, मोर पंख, बांसुरी, देसी घी इत्यादि सामग्री एकत्रित कर श्री राधा कृष्ण प्रतीक की स्थापना कर पूजन करें।श्री राधा अष्टमी व्रत कथा हिन्दी में
राधा अष्टमी का व्रत श्री कृष्ण जन्माष्टमी के बाद आता है, इस दिन को राधा रानी के जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है. आइये जानते हैं राधा अष्टमी व्रत की कथा।*पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब माता राधा स्वर्ग लोक से कहीं बाहर गई थीं। तभी भगवान श्रीकृष्ण विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। जब राधा ने यह सब देखा तो नाराज हो गईं और विरजा का अपमान कर दिया। आहत विरजा नदी बनकर बहने लगी। राधा के व्यवहार पर श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को गुस्सा आ गया और वह राधा से नाराज हो गए।
* सुदामा के इस तरह के व्यवहार को देखकर राधा नाराज हो गईं और उन्होंने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। इसके बाद सुदामा ने भी राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया।
* राधा के श्राप की वजह से सुदामा शंखचूड़ नामक दानव बने। बाद में इसका वध भगवान शिव ने किया। वहीं सुदामा के दिए गए श्राप की वजह से राधा जी मनुष्य के रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर आईं और उन्हें भगवान श्री कृष्ण का वियोग सहना पड़ा।
* कुछ पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लिया। ठीक उसी तरह उनकी पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रूप में पृथ्वी पर आई थीं।
* ब्रह्म वैवर्त पुराण की मानें तो राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थीं और उनका विवाह रापाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था।
* पौराणिक कथाओं के अनुसार राधा माता गोलोक में श्रीकृष्ण के साथ निवास करती थीं। एक बार देवी राधा गोलोक से कहीं बाहर गई। जब वापस आईं तो देखा कि कृष्ण भगवान गोलोक में नहीं हैं।
* उस समय भगवान श्रीकृष्ण अपनी एक सखी विराजा के साथ गोलोक में घूम रहे थे। यह बात जब राधा जी को मालूम हुई, तो उन्हें गुस्सा आया और वो सीधे उनके के पास पहुंची गई। वहां पहुंचकर उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को काफी भला-बुरा कहा।
* राधा जी का यह व्यवहार भगवान श्रीकृष्ण के मित्र श्रीदामा को बुरा लगा और उन्होंने राधा को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। राधा रानी को इतने गुस्से में देखकर कृष्ण भगवान की सखी विराजा भी वहां से चली गईं। इस श्राप के बाद राधा ने बदले में श्रीदामा को श्राप देते हुए राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
* राधा रानी के द्वारा दिए गए श्राप कारण ही श्रीदामा का जन्म शंखचूड़ दानव के रूप में हुआ था। दानव में जन्म लेने के बाद भी भगवान विष्णु का अनन्य भक्त बना।
* वहीं दूसरी ओर, राधा रानी ने भी पृथ्वी पर वृषभानु के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया, लेकिन राधा रानी वृषभानु जी की पत्नी देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं जन्मीं थी।
* दरअसल, जिस समय श्रीदामा और राधा रानी ने एक-दूसरे को श्राप दिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी से कहा कि आपको पृथ्वी पर देवी कीर्ति और वृषभानु जी की पुत्री के रूप में रहना है।
* इसके आगे भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी से कहा कि जब आप विवाह के योग्य हो जाएंगी तो आपका विवाह मनुष्य के अवतार में रायाण नामक एक वैश्य से होगा हालाँकि वह भी मेरे अंशावतारों में से ही एक होगा। आप धरती पर भी मेरी प्रियतम बनकर ही रहेंगी, परंतु, हम दोनों को वहां बिछड़ने का दुख सहना होगा।
* हे राधा रानी अब आप धरती पर जन्म लेने की तैयारी करें। सांसारिक दृष्टि में देवी कीर्ति गर्भवती हुईं और उन्हें प्रसव भी हुआ लेकिन देवी कीर्ति के गर्भ में योगमाया की प्रेरणा से वायु का प्रवेश हुआ और उन्होंने वायु को ही जन्म दिया, जब वह प्रसव पीड़ा से गुज़र रहीं थी।
* उसी समय वहां देवी राधा रानी एक प्यारी सी कन्या के रूप में प्रकट हो गईं। जिस दिन राधा रानी प्रकट हुई वह भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी का दिन था इसलिए भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी को राधा रानी अष्टमी के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की पूजा की जाती है।
*इस व्रत को करने से हमें सभी सांसारिक सुख आनंद प्राप्त होते हैं। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से धन की कमी नहीं होती और घर में बरकत बनी रहती है।
* धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान कृष्ण और राधा रानी को मालपुएं प्रिय हैं। इसलिए इनकी पूजा में मालपुए का भोग जरूर लगाना चाहिए।