नमामि शमीशान निर्वाण रूपं लिरिक्स | Namami Shamishan Lyrics
Namami Shamishan Lyrics In Hindi
नमामि शमीशान निर्वाण रूपं लिरिक्स देवाधिदेव महादेव भगवान शिव रुद्राष्टकम का एक श्लोक है। इस श्लोक का पाठ करने से सांसरिक जीवन मे होने वाले पापों से मुक्ति मिलती है। शत्रु पराजित होते हैं। नकारात्मकता दूर हो जीवन मे आनन्द की प्राप्ति होती है।नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित
१ - नमामीशमीशान निर्वाणरूपं,विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्,
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं,
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् ||
भावार्थ -
* हे भगवन ईशान को मेरा प्रणाम ऐसे भगवान जो कि निर्वाण रूप हैं जो कि महान ॐ के दाता हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्माण में व्यापत हैं जो अपने आपको धारण किये हुए हैं जिनके सामने गुण अवगुण का कोई महत्व नहीं, जिनका कोई विकल्प नहीं, जो निष्पक्ष हैं जिनका आकार आकाश के समान हैं जिसे मापा नहीं जा सकता उनकी मैं उपासना करता हूँ ।
२ - निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं,
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्,
करालं महाकालकालं कृपालं,
गुणागारसंसारपारं नतोहम् ||
भावार्थ -
* जिनका कोई आकार नहीं, जो ॐ के मूल हैं, जिनका कोई राज्य नहीं, जो गिरी के वासी हैं, जो कि सभी ज्ञान, शब्द से परे हैं, जो कि कैलाश के स्वामी हैं, जिनका रूप भयावह हैं, जो कि काल के स्वामी हैं, जो उदार एवम् दयालु हैं, जो गुणों का खजाना हैं, जो पुरे संसार के परे हैं उनके सामने मैं नत मस्तक हूँ ।
३ - तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं,
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्,
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा,
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ||
भावार्थ -
* जो कि बर्फ के समान शील हैं, जिनका मुख सुंदर हैं, जो गौर रंग के हैं जो गहन चिंतन में हैं, जो सभी प्राणियों के मन में हैं, जिनका वैभव अपार हैं, जिनकी देह सुंदर हैं, जिनके मस्तक पर तेज हैं जिनकी जटाओ में लहलहारती गंगा हैं, जिनके चमकते हुए मस्तक पर चाँद हैं, और जिनके कंठ पर सर्प का वास हैं ।
४ - चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं,
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्,
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं,
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ||
भावार्थ -
* जिनके कानों में बालियाँ हैं, जिनकी सुन्दर भौंहें और बड़ी-बड़ी आँखे हैं जिनके चेहरे पर सुख का भाव हैं जिनके कंठ में विष का वास हैं जो दयालु हैं, जिनके वस्त्र शेर की खाल हैं, जिनके गले में मुंड की माला हैं ऐसे प्रिय शंकर पुरे संसार के नाथ हैं उनको मैं पूजता हूँ ।
५ - प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं,
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं,
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं,
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् ||
भावार्थ -
* जो भयंकर हैं, जो परिपक्व साहसी हैं, जो श्रेष्ठ हैं अखंड है जो अजन्मे हैं जो सहस्त्र सूर्य के सामान प्रकाशवान हैं जिनके पास त्रिशूल हैं जिनका कोई मूल नहीं हैं जिनमे किसी भी मूल का नाश करने की शक्ति हैं ऐसे त्रिशूल धारी माँ भगवती के पति जो प्रेम से जीते जा सकते हैं उन्हें मैं वन्दन करता हूँ ।
६ - कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी,
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी,
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी,
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||
भावार्थ -
* जो काल के बंधे नहीं हैं, जो कल्याणकारी हैं, जो विनाशक भी हैं,जो हमेशा आशीर्वाद देते है और धर्म का साथ देते हैं , जो अधर्मी का नाश करते हैं, जो चित्त का आनंद हैं, जो जूनून हैं जो मुझसे खुश रहे ऐसे भगवान जो कामदेव नाशी हैं उन्हें मेरा प्रणाम ।
७ - न यावद् उमानाथपादारविन्दं,
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्,
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं,
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ||
भावार्थ -
* जो यथावत नहीं हैं, ऐसे उमा पति के चरणों में कमल वन्दन करता हैं ऐसे भगवान को पूरे लोक के नर नारी पूजते हैं, जो सुख हैं, शांति हैं, जो सारे दुखो का नाश करते हैं जो सभी जगह वास करते हैं ।
८ - न जानामि योगं जपं नैव पूजां,
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्,
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं,
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ||
भावार्थ -
* मैं कुछ नहीं जानता, ना योग, न जप न ही पूजा, हे देव मैं आपके सामने अपना मस्तक हमेशा झुकाता हूँ, सभी संसारिक कष्टों, दुःख दर्द से मेरी रक्षा करे. मेरी बुढ़ापे के कष्टों से से रक्षा करें | मैं सदा ऐसे शिव शम्भु को प्रणाम करता हूँ।
९ - रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये,
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति ||}
भावार्थ -
* जो मनुष्य भगवान शंकर की तुष्टि के लिए ब्राह्मण द्वारा कहे गए इस रुद्राष्टक का भक्ति पूर्वक पाठ करता है। इस से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न हो कर उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
|| इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ||