जय राम रमा रमनं समनं लिरिक्स | Jai Ram Rama Ramanand Samanam Lyrics

Jai Ram Rama Ramanand Samanam Lyrics

Jai Ram Rama Ramanand Samanam Lyrics In Hindi

जय राम रमा रमनं समनं, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की स्तुति है। ऐसा माना जाता है कि राम नाम जपने असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है,ज्ञान चक्षु खुलते हैं,ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों का पता चलता है स्वास्थ्य अच्छा रहता है जीवन के सभी दुख-दर्द खत्म हो जाते हैं मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्तुति भगवान शिव द्वारा प्रभु राम के अयोध्या वापस आपने के उपलक्ष्य में गाई गई है।

जय राम रमा रमनं समनं हिन्दी में

|| छन्द: ||
जय राम रमा रमनं समनं,
भव ताप भयाकुल पाहि जनम,
अवधेस सुरेस रमेस बिभो,
सरनागत मागत पाहि प्रभो ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

दससीस बिनासन बीस भुजा,
कृत दूरी महा महि भूरी रुजा,
रजनीचर बृंद पतंग रहे,
सर पावक तेज प्रचंड दहे ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

महि मंडल मंडन चारुतरं,
धृत सायक चाप निषंग बरं,
मद मोह महा ममता रजनी,
तम पुंज दिवाकर तेज अनी ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

मनजात किरात निपात किए,
मृग लोग कुभोग सरेन हिए,
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे,
बिषया बन पावँर भूली परे ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

बहु रोग बियोगन्हि लोग हए,
भवदंघ्री निरादर के फल ए,
भव सिन्धु अगाध परे नर ते,
पद पंकज प्रेम न जे करते ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

अति दीन मलीन दुखी नितहीं,
जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं,
अवलंब भवंत कथा जिन्ह के,
प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

नहीं राग न लोभ न मान मदा,
तिन्ह के सम बैभव वा बिपदा,
एहि ते तव सेवक होत मुदा,
मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ,
पड़ पंकज सेवत सुद्ध हिएँ,
सम मानि निरादर आदरही,
सब संत सुखी बिचरंति मही ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

मुनि मानस पंकज भृंग भजे,
रघुबीर महा रंधीर अजे,
तव नाम जपामि नमामि हरी,
भव रोग महागद मान अरी ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

गुण सील कृपा परमायतनं,
प्रणमामि निरंतर श्रीरमनं,
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं,
महिपाल बिलोकय दीन जनं ||

राजा राम, राजा राम,
सीता राम,सीता राम ||

|| दोहा: ||

बार बार बर मागऊँ हरषी देहु श्रीरंग,
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग,
बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास,
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास ||

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url