बंदउँ गुरु पद पदुम परागा लिरिक्स | Bandau Guru Pad Padum Paraga Lyrics
Bandau Guru Pad Padum Paraga Ka Arth Lyrics in hindi
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा लिरिक्स श्री राम चरित्र मानस से अवतरित का पाठ करने से मन में आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है कि गुरु के द्वारा हमारे मन रूपी दर्पण की मलीनता दूर कर जीवन में प्रकाश की उतपत्ति की जा सकती है।Bandau Guru Pad Padum Paraga Chaupai
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा,सुरुचि सुबास सरस अनुरागा,
अमिअ मूरिमय चूरन चारू,
समन सकल भव रुज परिवारू ||१||
भावार्थ:-
* मैं गुरु जी के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ।
* जो सुन्दर स्वादिष्ट, सुगंध युक्त तथा अनुराग रूपी रस से परिपूर्ण है।
* वह अमर संजीवनी बूटी रुपी सुंदर चूर्ण के समान है।
* जो समस्त परिवारिक मोह रुपी महान रोगों का नाश करने वाला है ||
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती,
मंजुल मंगल मोद प्रसूती,
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी,
किएँ तिलक गुन गन बस करनी ||२||
भावार्थ:-
* वह चरण-रज शिव जी के शरीर पर सुशोभित निर्मल भभूति के समान है।
* जो कि परम कल्याणकारी और आनन्द को प्रदान करने वाली है।
* उस चरण-रज से मन रूपी दर्पण की मलीनता दूर हो जाती है और जिसके तिलक लगाने से प्रकृति के सभी गुण वश में हो जाते है ||
श्री गुर पद नख मनि गन जोती,
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती,
दलन मोह तम सो सप्रकासू,
बड़े भाग उर आवइ जासू ||३||
भावार्थ:-
* श्री गुरु जी के चरणों के नख प्रकाशित मणियों के समान है।
* जिनके स्मरण मात्र से ही हृदय में ज्ञान रुपी दिव्य प्रकाश उत्पन्न हो जाता है।
* उस प्रकाश से अज्ञान रूपी अन्धकार नष्ट हो जाता है।
* वह मनुष्य बड़े भाग्यशाली होते हैं।
* जिनके हृदय में वह दिव्य प्रकाश प्रवेश कर जाता है ||
उघरहिं बिमल बिलोचन ही के,
मिटहिं दोष दुख भव रजनी के,
सूझहिं राम चरित मनि मानिक,
गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ||४||
भावार्थ:-
* उस प्रकाश से हृदय के दिव्य नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि का दुःख रुपी अन्धकार मिट जाता हैं।
* उस प्रकाश से हृदय रूपी खान में छिपे हुए श्री रामचरित्र रूपी मणि और मांणिक स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं ||
॥ दोहा ॥
जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान,
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान ||१||
भावार्थ:-
* जिस प्रकार आश्चर्यचकित तरीके से मनुष्य पर्वतों, बनों और पृथ्वी के अंदर छिपे रत्नों को पाकर समृद्धि को प्राप्त हो जाता है।
* उसी प्रकार उन मणियों के प्रकाश रुपी सुरमा को अपने दिव्य नेत्रों में लगाकर साधक परम-सिद्धि को प्राप्त कर जाता हैं ||
॥ चौपाई ॥
गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन,
नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन,
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन,
बरनउँ राम चरित भव मोचन ||१||
भावार्थ:-
* श्री गुरु महाराज के चरणों की रज सौम्य और सुंदर सुरमा के समान है।
* जो दिव्य नेत्र के दोषों का नाश करने वाला है।
* उस रज रुपी सुरमा से विवेक रूपी नेत्र को निर्मल करके मैं संसार रूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूँ ||
|| हरि: ॐ तत् सत् ||