सकट चौथ व्रत कथा | Sakat Chauth Vrat Katha

जाने सकट चौथ का व्रत कैसे किया जाता है

सकट चौथ की कथा के द‍िन भगवान श्री गणेश एवं श्री चन्द्र देव  के व्रत-पूजन का व‍िशेष विधि व‍िधान से किया जाता है ज‍िससे माताओं की संतानों को लंबी आयु, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे तिलकुट चौथ, माघ संकष्टी चतुर्थी आदि नामों से भी पुकारा जाता है


Sakat Chauth Ki Katha

सकट चौथ व्रत रखने के नियम

*सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को उनके हरे रंग के ही कपड़े पहनाना चाहिए।
*सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को तिलकुट का भोग लगाना न भूलें।
*इस दिन तिल से बनी चीजों, तिल के लड्डू या तिल से बनी मिठाई का भोग लगाया जाता है।
*सकट चौथ के दिन चंद्रमा को जल अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।

सकट चौथ पूजा सामग्री 

*गणेश जी की प्रतिमा, लाल फूल, 21 गांठ दूर्वा, जनेऊ, सुपारी पान का पत्ता, सकट चौथ की पूजा के लिए लकड़ी की चौकी।

*पीला कपड़ा, लौंग, रोली, अबीर, गुलाल, गाय का घी, दीप, धूप, गंगाजल, मेहंदी, सिंदूर, इलायची, अक्षत, हल्दी, मौली, गंगाजल, 11 या 21 तिल के लड्डू, मोदक, फल, कलश, चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए दूध, चीनी आदि, इत्र, सकट चौथ व्रत कथा की पुस्तक

संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि

इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को शुद्ध करें और भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को एक साफ स्थान पर स्थापित करें। भगवान गणेश को दुर्वा, फूल, शमी पत्र ,चंदन और तिल से बने लड्डू अर्पित करें। पूजा के दौरान दीपक जलाएं और भगवान गणेश के मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” का जाप करें। पूजा के बाद गणेश आरती करें और तिल व गुड़ से बने प्रसाद का भोग लगाएं। संध्या के समय चंद्रमा को देखकर जल से अर्घ्य अर्पित करें और भगवान गणेश से अपने परिवार के सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्रार्थना करें। चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करें और प्रसाद ग्रहण करें।

सकट चौथ व्रत कथा

सकट चौथ का व्रत भगवान गणेश को समर्पित है और इसे सच्चे मन से करने पर संतान सुख और कष्टों से मुक्ति का वरदान मिलता है। व्रत के साथ सकट चौथ की कथा सुनना अत्यंत आवश्यक माना जाता है।

कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने कार्तिकेय और गणेशजी से पूछा कि कौन देवताओं के कष्ट दूर कर सकता है। इस पर दोनों ने स्वयं को इस कार्य के लिए योग्य बताया। शिवजी ने कहा कि जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा, वही यह कार्य करेगा। कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर परिक्रमा के लिए निकल गए। इस दौरान गणेशजी ने विचार किया कि उनका वाहन चूहा है, जो पूरे पृथ्वी की परिक्रमा करने में अधिक समय लेगा। तब उन्होंने एक उपाय सोचा और अपने माता-पिता शिव और पार्वती की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। जब कार्तिकेय लौटे, तो उन्होंने स्वयं को विजयी बताया।
भगवान शिव ने गणेशजी से पूछा कि उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा क्यों नहीं की। गणेशजी ने उत्तर दिया कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक विद्यमान हैं। उनके उत्तर से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें देवताओं के कष्टों का निवारण करने का आशीर्वाद दिया। साथ ही, यह भी कहा कि जो व्यक्ति चतुर्थी के दिन श्रद्धा से उनकी पूजा करेगा और चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। सकट चौथ व्रत का यह पर्व आस्था, संतान के कल्याण और भगवान गणेश की कृपा पाने का प्रतीक है।

सकट चौथ वर्त की कहानी कहने और सुनना बहुत ही शुभ माना जाता है इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है तो देखिए सकट चौथ वर्त में कहानी सुनना बहुत जरूरी होता है आप चाहें तो जिस जगह पर भी आप कहानी सुन भी सकते हैं या पूजा कर रहे हैं वहां पर आप चौकी लगा लीजिएगा चौकी ना लगाना चाहे तो आप एक थाली ले लीजिए थाली में स्वास्तिक बना के वहां पर हम गणेश जी को विराजमान कर देंगे गणेश जी को तिलक करेंगे जो जो कथा सुन रहे हैं सभी को हम तिलक कर देंगे फिर हमें अपने सीधे हाथ में थोड़े तिल लेने हैं तिल लेकर सकट चौथ वर्त की कहानी सुनी जाती है तो यहां पर मैंने हाथों में तिल ले लिए हैं अब मैं आपको सकट चौथ वर्त की।

कहानी

बहुत समय पहले की बात है एक बार एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी बुढ़िया का एक बेटा था बुढ़िया बहुत ज्यादा गरीब थी बुढ़िया का बेटा गांव वालों के पशु जंगल में चरा के लाता था और पशुओं को चराने के बदले जो भी पैसे मिलते उसी से मां बेटे दोनों का गुजारा होता था इस तरह से दिन बीत रहे थे एक दिन बुढ़िया का बेटा पशु चराने के लिए जैसे ही घर से निकला उसकी चाची ताई ने उसे कहा कि बेटा तुम तो पशु चराने चले जाते हो इतनी मेहनत करते हो और तुम्हारी मां तो गट्टे कर करके खाती है यानी पकवान बना बना के खाती है उस बुढ़िया के बेटे ने कहा ऐसा तो हो ही नहीं सकता मेरी मां ऐसा कर ही नहीं सकती उसकी चाची ताई बोली अगर तुम्हें यकीन नहीं है तो आज अपने घर थोड़ा जल्दी च चले जाना अपनी आंखों से ही देख लेना बुढ़िया के बेटे ने सोचा चलो ठीक है आज जा के देख लेता हूं बुढ़िया का बेटा रोजाना से थोड़ा पहले घर आ गया उस दिन सकट चोथ का व्रत था बुढ़िया ने सकट चौथ का व्रत किया था बुढ़िया तिल भून के तिलकुट बना रही थी जब बुढ़िया का बेटा आया उसने अपनी मां को तिलकुट बनाते हुए देखा तो उसके यकीन हो गया कि मेरी चाची ताई तो ठीक कह रही थी मैं तो यहां जंगल में चला जाता हूं पशु चराने और मेरी मां तो पकवान बना बना के खाती है बुढ़िया के बेटे ने तुरंत अपनी मां से कहा मां मैं तो घर छोड़ के जाऊंगा बुढ़िया ने कहा बेटा क्या बात हो गई तो उसका बेटा बोला मां मैं तो चला जाता हूं जंगल में पशु चराने और तुम तो पीछे से गट्टे कर कर के यानी पकवान बना बना के खाती हो मुझे खिलाना तो दूर मुझे बताती भी नहीं हो यह कह के बुढ़िया का बेटा घर छोड़ के जाने लगा बुढ़िया ने बहुत समझाया बेटा आज मेरा सकट चौथ का व्रत है मैं तो ते लंबी उम्र के लिए सकट चौथ माता का व्रत करती हूं उसी के लिए तिलकुट बना रही थी लेकिन बुढ़िया का बेटा नहीं माना बुढ़िया भी समझ गई यह नहीं मानेगा यह किसी का सिखाया पढ़ाया हुआ है बुढ़िया ने कहा बेटा अगर तुम जा ही रहे हो तो मेरे यह सकट चौथ व्रत की कहानी सुने हुए तिल अपने साथ ले जाओ जहां भी तुम पर भीड़ पड़े जहां भी विपदा आए यह तिल पूर के बैठ जाना अगर मैं तुम्हारे नाम के व्रत करती हूंगी तो सकट चौथ माता की कृपा से तुम्हें कुछ नहीं होगा बुढ़िया का बेटा वह तिल अपने हाथ में लेकर चल दिया चलते-चलते एक घने जंगल में पहुंच गया जैसे ही बुढ़िया का बेटा जंगल के बीच में पहुंचा तो वहां पर सामने शेर खड़ा हुआ दिखाई दिया शेर को देखते ही बुढ़िया का बेटा थरथर कांपने लगा अब उसने सोचा कि आज मेरा मरना तय है यह शेर तो मुझे खा के मानेगा अब मैं तो बच नहीं सकता डर के मारे उसे अपनी मां याद आई क्योंकि इंसान को डर में सबसे पह पहले मां याद आती है मां याद आते ही बुढ़िया के बेटे ने मां के दिए हुए तिल अपने चारों तरफ पूर लिए और बैठ गया हे सकट चौथ माता अगर मेरी मां मेरे नाम के व्रत करती होगी तो यह शेर गाय बन जाएगा और नहीं तो मेरा मरना आज तय है अब बुढ़िया तो अपने बेटे के नाम के ही व्रत करती थी सकट चौथ माता की कृपा से शेर गाय बन गया और पूंछ हिलाते हुए वहां से चला गया बुढ़िया के बेटे ने कहा भाई आज तो बहुत बचे वहां से आगे चला तो जाके देख था कि एक बहुत बड़ी नदी फूफा करती हुई आ रही है अब नदी को पार करना जरूरी है क्योंकि अगर नदी को पार नहीं किया तो जंगली जानवर रात को खा जाएंगे और अगर नदी को पार करने चला तो फिर भाई नदी में डूब के मर जाएगा क्योंकि नदी बहुत भयंकर है अब फिर से फंस गया फिर उसे अपनी मां की याद आई बुढ़िया का बेटा तो दोबारा अपने तिल पूर के बैठ गया और बोला हे सकट चौथ माता अगर मेरी मां मेरे नाम का व्रत करती होगी तो ये नदी दो हिस्सों में फट जाएगी और बीच में रास्ता बन जाएगा नहीं तो मेरा आज डूब के मरना तय है अब सकट चौथ माता की कृपा से नदी दो हिस्सों में बट गई और बीच में रास्ता बन गया रास्ता पार करके दूसरी नगरी में पहुंच गया दूसरी नगरी में जाके देखा तो एक औरत रोते-रोते पड़े बना रही थी वो उसके पास जाकर बोला हे माई यह क्या बात पड़े बना रही हो मतलब बहुत खुश हो और रो रही हो मतलब बहुत दुखी हो ये सुख दुख दोनों एक साथ कैसे से आए तब वो औरत बोली कि बेटा हमारी नगरी में छ महीने में आव पकता है और हर बार एक आदमी को बिठाया जाता है बारी-बारी सबके घरों का नंबर आता है आज मेरे घर का नंबर है और मेरे एक ही बेटा है आज मेरा बेटा आव में तप जाएगा और फिर मैं उसे कभी नहीं देख पाऊंगी मेरा बेटा खत्म हो जाएगा इसलिए मैं बहुत दुखी हूं और आखिरी बार अपने बेटे को कुछ बना के खिलाना है तो पकवान बना रही हूं पड़े बना रही हूं हूं बुढ़िया का बेटा बोला माई अगर तुम मुझे पेट भर के यह पड़े खिला दो तो मैं तुम्हारे बेटे के बदले जाकर आओ मैं बैठ जाऊंगा रोते-रोते औरत बोली बेटा पूढ़े तो चाहे तू सारे खा ले पर यूं कौन किसकी आई में जाता है बुढ़िया का बेटा बोला माई मैं चला जाऊंगा भर पेट पूरे खा लिए अब नींद आने लगी सोते टाइम बुढ़िया का बेटा बोला माई जब राजा के सैनिक बुलाने आए तो मुझे जगा दियो बोली ठीक है बेटा अब बुढ़िया का बेटा तो सो हो गया जैसे ही सैनिक जगाने आए तो वोह औरत कभी कुंडी खटखटा आए कभी दरवाजा खटखटा आए बिरान पूत को कैसे जगाए अब आवाज सुनके बुढ़िया का बेटा जग गया बोला माई आ गए बोली हां बेटा आ गए बुढ़िया का बेटा उठके सैनिकों के पीछे पीछे चल दिया और जाके आओ में बैठ गया आओ में बैठा जैसे ही तपत लगी झट से मां की याद आई मां के दिए हुए तिल अपने चारों तरफ पूर के बैठ गया बोला हे सकट चौथ माता अगर मेरी मां मेरे नाम के व्रत करती होगी तो आज मैं अग्नि में नहीं जलू नहीं तो मेरा जलना तो तय है अब भाई बुढ़िया तो अपने बेटे के नाम के ही व्रत करती थी सकट चौथ माता की कृपा से बुढ़िया का बेटा बिल्कुल भी नहीं जला एक दिन हो गया दो दिन हो गया तीसरे दिन गली में बच्चे बैट बॉल खेल रहे थे एक बच्चे की बोल जाके आव से टकराई तो टन से आवाज आई यह आवाज सुनके गली में सब लोग इकट्ठे हो गए पूरी नगरी इकट्ठी हो गई कि छ महीने में आव पकता था आज तीसरे दिन कैसे पक गया राजा को बुलाया राजा ने कहा कि मट के नीचे उतारो सैनिक जब मट के नीचे उतारने लगे तो अंदर से बुढ़िया का बेटा बोला भाई धीरे-धीरे भाई धीरे-धीरे अब आओ में से आदमी की आवाज सुनक सैनिक तो दूर भागने लगे राजा ने तुरंत तलवार निकाली और कहा कि बाहर निकल और सच-सच बता तू कौन है भूत है पिशाच है कौन है तब बुढ़िया का बेटा बाहर निकला और बोला ना भूत हूं ना पिशाच हूं मैं तो एक बुढ़िया का बेटा हूं मेरी चाची ताई ने मुझे सिखा दिया तो मैं घर से निकला आया मेरी मां ने यह तिल के दाने दिए थे और यूं कही थी जहां भी भीड़ पड़े वहां ये तिल के दाने पूर के बैठ जाना अगर मैं तेरे नाम के वर्त करती हूंगी तो सकट चौथ माता की कृपा से तेरे को कुछ नहीं होगा मैं तो अपनी मां के दिए हुए तिल के दाने पूर के बैठा था इसलिए मैं तो जिंदा बच गया बुढ़िया के बेटे की यह बात सुनक रानी ने राजा से कहा कि मैं तो अपनी बेटी की शादी इसी से करूंगी इसको तो अग्नि भी नहीं जला सकती ऐसा दामाद हमें कहां मिलेगा राजा के भी बात समझ आ गई राजा ने अपनी बेटी की शादी बुढ़िया के बेटे से कर दी दोनों महल में रहने लगे एक दिन राजा की बेटी महल की छत पर टहल रही थी तभी बुढ़िया का बेटा भी वहां आ गया और बोला कि देखो हमारे देश की तरफ तो काली बदली छाई है लगता है बहुत तेज बारिश होगी राजा की बेटी बोली आपके भी देश है तब वोह बोला मेरे देश भी है घर भी है मां भी है सब कुछ है तो राजा की बेटी बोली फिर हम यहां क्यों पड़े हैं चलो अपने घर चलेंगे बुढ़िया का बेटा बोला अपने पिताजी से कह दो विदा कर दें अब राजा की बेटी भागी भागी अपने पिताजी के पास गई और जाकर बोली पिताजी पिताजी आपके दामाद अपने घर जाना चाहते हैं राजा बोला बेटा यह तो बहुत अच्छी बात है दूर जमाई लाख जमाई घर जमाई खाक जमाई तुम अपने घर जाओ फलो फूलो हम तो यही चाहते हैं राजा ने खूब सारा धन दौलत देके अपनी बेटी और दामाद को विदा कर दिया बुढ़िया का बेटा जब गांव के पास आया तो एक दूत को भेज दिया दिया कि मेरी मां को बता दे तेरा बेटा आया है जब वो उनके घर गया तो देखा कि बुढ़िया तो रो-रो के अंधी हो गई है जाके उस सैनिक ने बुढ़िया से कहा कि मां जी आपका बेटा बह आए हैं बुढ़िया बोली बेटा बोली ठोली तो मेरी दौरानी जिठानी बहुत मार है तू भी क्यों बोली मारे कहां मेरा बेटा आओगा पता ना किस जंगल में है कहां किस हाल में पड़ा है मेरा बेटा कहां से आओगा वो बोला ना बूढ़ी माई आपका ही बेटा आया है बुढ़िया ने लोहे की आंगी पहन ली और बोली अगर मेरा बेटा होगा तो दूध की धार सीधा इसके मुंह पर लगेगी अब सकट चौथ माता की कृपा से दूध की धार सीधा बुढ़िया के बेटे के मुंह प गिरी सारी मूंछ भी गई सकट चौथ माता की कृपा से जैसे ही बुढ़िया ने अपने बेटे की आवाज सुनी बुढ़िया को तो दिखाई देने लग गया अब बेटा अपनी मां से माफी मांगने लगा मां कहां अपने बेटे से ज्यादा दिन नाराज रहती बुढ़िया ने तो झट से अपने बेटे बह को गले लगा लिया हे सकट चौथ माता जैसे बुढ़िया के साथ पहले करी वैसे किसी के सा साथ मत करियो जैसे बाद में हुई वैसे सबके साथ करियो इस कहानी को कहते सुनते हु कारा भरते सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखियो और सबकी संतान को लंबी उम्र दियो।

कहानी 2

एक बार एक गांव में दो दो रानी जेठानी रहती थी देवरानी बहुत अमीर थी और जेठानी बहुत बहुत गरीब थी जेठानी देवरानी के घर काम करने जाती थी और जो भी बचा कुचा बचता जो रोटी सब्जी जो बचती बची हुई वो अपने घर लाकर बच्चों को खिला देती थी इसी तरह जेठानी का काम चल जाता आया सकट चोत का व्रत उस दिन जेठानी ने सकट चोथ का व्रत कर लिया तो जेठानी देवरानी के घर काम करने नहीं गई अब वो काम करने नहीं गई तो जो बचा कुचा आता था उस दिन वो भी नहीं आया बच्चे खाना मांगने लगे मां खाना दो खाना दो अब वह खाना कहां से दे बच्चे रोने लग गए उसका आदमी घर आया और देखा कि यह काम करने तो गई नहीं बरत करके बैठ गई बच्चे रोने लग रहे हैं आदमी को बहुत गुस्सा आया तो दमड़ी मड़कन दी अब वह तो बेचारी कुटी पिटी एक कोने में पड़ी रोती रही इतने में आ गए विनायक महाराज बाहर से आवाज लगाई भाई घर में कोई है तो बोली हां महाराज मैं हूं बोलो तो बोले बेटा मैं तो नि मट बा जाऊंगा यानी फ्रेश होऊंगा शौचालय चाहिए बोली महाराज कहां के शौचालय य पूरा ही घर शौचालय जहां जी कर वहां कर लो अब विनायक महाराज का तो सेठ के घर वासा था पूरे घर में कर दिया अब चलते टाइम बोले बेटा हाथ कहां पहुंच वो बेचारी पिटी कुटी तो पड़ी ही थी बोली महाराज मेरे सिर प पहुंच लो अब वो सिर पर हाथ पहुंच के विनायक महाराज तो चले गए सुबह उठकर देखा तो पूरे घर में हीरे मोती सोना चांदी बिखरा पड़ा बाल-बाल में हीरे मोती जड़े पड़े अब वो तो सारा परिवार अपना धन समेटने में लग गया उधर देवरानी ने सोचा जीजी कल भी काम करने नहीं आई आज भी काम करने नहीं आई अपने बच्चों को बोली जाओ अपनी ताई जी को बुला लाओ बच्चे ताई जी के घर गए जाके देखा कि ताई जी के घर तो सोना चांदी धन दौलत बिखरा पड़ा है बच्चे तो भागे भागे वापस घर आए और बोले मां ताई जी के घर तो बहुत सारा धन सोना चांदी हीरे मोती बिखरे पड़े आज तो कोई और ही ताई जी के घर काम कर दे ताई जी तो इतनी धनवान हो गई अब भाई उसकी देवरानी तो भागी भागी गई और जाके बोली जीजी आन करा बिनन करा क्या जादू टोना करा इतना धन कहां से आया जिठानी बोली जीजी धन की क्या बताऊं कल मेरा सकट चौथ का व्रत था इसलिए मैं तेरे घर काम करने ना गई तो घर में कुछ खाने का ना आया तेरे जेठ को गुस्सा आया तो मेरे खूब मारे और फिर बिना एक जी वाली सारी बात अपनी देवरानी को बता दी अब उसकी देवरानी तो अपने घर गई और जाके अपने आदमी को बोली कि मेरे मार उसका आदमी बोला निर भाग वो तो बिचारी भूखी प्यासी पीटी थी तू धाई धापी भी क्यों पीटे आख ना मेरे मार अब दो-चार बार कही उसने बहुत गुस्सा आया खूब दमर दमण करके अच्छी ही तोड़ दी कुट पिट के कोने में पड़ गई आए विनायक महाराज उस दिन विनायक महाराज का तेली के घर बासा था खूब खड़ खा के आए थे आके बोले कि घर में कोई है कि हां महाराज मैं हूं बोलो कि बेटा मैं तो सोच के लिए जाऊंगा यानी फ्रेश होऊंगा बताओ कि महाराज पूरा घर लीपा पूता झाड़ू पोचा कर रखा साफ सफाई कर रखी सारे में कर जाऊ अब विनायक महाराज ने तो सारे में सिडा सड़ा दिया चलते टाइम बोले बेटा हाथ कहां पहुंच बोली महाराज शैंपू कर रखा है बालों में एक-एक बाल खिल र है मेरे बालों में पहुंच लो मेरे सिर पर पहुंच लो अब विनायक महाराज तो उसके सिर पर हाथ पहुंच के चले गए सुबह उठी तो सिड़ाए सिड़ेचैन जावे हर जगह बदबू ही बदबू सिड़ाए ही सिड़ाए सड़े अब भाई वो समेटना भारी हो गया भागी भागी गई और विनायक महाराज के पैर में पड़ गई हे विनायक महाराज के करी मेरी जिठानी को तो इतना धन दिया और मेरे को इतना सिड़सर दिया विनायक महाराज बोले तेरी जिठानी ने तो सत का बरत किया था और वो तो सच्ची थी तू तो धन की लोभी थी तने तो धन के लोभ में सारे प्रपंच करे थे देवरानी ने तो विनायक महाराज के पैर पकड़ लिए हे विनायक महाराज अब की बार तो ये गलती हो गई आगे से नहीं होगी आपने ही फैलाया है आप ही सिमटा होगे कैसे भी करो और इसको सिमटा हो विनायक महाराज को उस परे दया आ गई विनायक महाराज ने जितना चिड़ाओ सिड़ाया था सारा सिमटा लिया हे विनायक महाराज जैसे देवरानी के साथ करी वैसे किसी के साथ मत करियो और जैसे जेठानी के साथ करी वैसे सबके साथ करियो इस कहानी को कहते सुनते हुका भरते सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखियो और सबके घर को अनधन से भर दियो यह थी विनायक महाराज की कथा इस तरह से सकट चौथ वर्त की कथा पूर्ण होती है कथा सुनने के बाद जो हमने हाथ में तिल के दाने लिए हैं वो थोड़े से तिल हम गणेश जी महाराज को समर्पित कर देंगे और उसके बाद थोड़े से तिल हम जल के लोटे में डाल देंगे बाद में जो भी तिल बच जाएंगे उनके हमें दो हिस्से कर लेने हैं एक चंद्रमा के लिए एक सूरज के लिए तो अभी हमने दिन में कहानी सुनी है तो थोड़े से तिल लेक हम सूर्य देवता को अरग दे देंगे और यह आधे तिल हम अपने पल्लू में बांध लेंगे इससे हम रात को चंद्रमा को अरग देंगे तो कहानी सुने हुए यह तिल है ना इसी से चंद्रमा को अरग देना है।

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