श्री गायत्री चालीसा लिरिक्स | Shree Gayatri Chalisa Lyrics

Gayatri Chalisa Lyrics

Shree Gayatri Chalisa Lyrics In Hindi

यह हर साल ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है| ऐसा माना जाता है कि गायत्री माता से ही सभी वेदों की उत्पत्ति हुई थी| इसलिए उन्हें वेद माता कहा जाता है| जो व्यक्ति रोज़ाना गायत्री चालीसा का पाठ करता है, उसे आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन, और ब्रह्मवर्चस इत्यादि सुखो की प्राप्ति होती हैं|

दोहा

हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा,
जीवन ज्योति प्रचण्ड,
शांति, क्रांति, जागृति,
प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ||

जगत जननि, मंगल करनि,
गायत्री सुखधाम,
प्रणवों सावित्री, स्वधा,
स्वाहा पूरन काम ||

चालीसा

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी,
गायत्री नित कलिमल दहनी ||१||

अक्षर चौबिस परम पुनीता,
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ||२||

शाश्वत सतोगुणी सतरुपा,
सत्य सनातन सुधा अनूपा ||३||

हंसारुढ़ सितम्बर धारी,
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ||४||

पुस्तक पुष्प कमंडलु माला,
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ||५||

ध्यान धरत पुलकित हिय होई,
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ||६||

कामधेनु तुम सुर तरु छाया,
निराकार की अदभुत माया ||७||

तुम्हरी शरण गहै जो कोई,
तरै सकल संकट सों सोई ||८||

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली,
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ||९||

तुम्हरी महिमा पारन पावें,
जो शारद शत मुख गुण गावें ||१०||

चार वेद की मातु पुनीता,
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ||११||

महामंत्र जितने जग माहीं,
कोऊ गायत्री सम नाहीं ||१२||

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै,
आलस पाप अविघा नासै ||१३||

सृष्टि बीज जग जननि भवानी,
काल रात्रि वरदा कल्यानी ||१४||

ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते,
तुम सों पावें सुरता तेते ||१५||

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे,
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ||१६||

महिमा अपरम्पार तुम्हारी,
जै जै जै त्रिपदा भय हारी ||१७||

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना,
तुम सम अधिक न जग में आना ||१८||

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा,
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ||१९||

जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई,
पारस परसि कुधातु सुहाई ||२०||

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई,
माता तुम सब ठौर समाई ||२१||

ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे,
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ||२२||

सकलसृष्टि की प्राण विधाता,
पालक पोषक नाशक त्राता ||२३||

मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पतकी भारी ||२४||

जापर कृपा तुम्हारी होई,
तापर कृपा करें सब कोई ||२५||

मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें,
रोगी रोग रहित है जावें ||२६||

दारिद मिटै कटै सब पीरा,
नाशै दुःख हरै भव भीरा ||२७||

गृह कलेश चित चिंता भारी,
नासै गायत्री भय हारी ||२८||

संतिति हीन सुसंतति पावें,
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ||२९||

भूत पिशाच सबै भय खावें,
यम के दूत निकट नहिं आवें ||३०||

जो सधवा सुमिरें चित लाई,
अछत सुहाग सदा सुखदाई ||३१||

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी,
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ||३२||

जयति जयति जगदम्ब भवानी,
तुम सम और दयालु न दानी ||३३||

जो सदगुरु सों दीक्षा पावें,
सो साधन को सफल बनावें ||३४||

सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी,
लहैं मनोरथ गृही विरागी ||३५||

अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता,
सब समर्थ गायत्री माता ||३६||

ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी,
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ||३७||

जो जो शरण तुम्हारी आवें,
सो सो मन वांछित फल पावें ||३८||

बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ,
धन वैभव यश तेज उछाऊ ||३९||

सकल बढ़ें उपजे सुख नाना,
जो यह पाठ करै धरि ध्याना ||४०||

दोहा

यह चालीसा भक्तियुत,
पाठ करे जो कोय ||

तापर कृपा प्रसन्नता,
गायत्री की होय ||

इति श्री गायत्री चालीसा ||

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