प्रातः कालीन जैन वंदना लिरिक्स | Pratah Kaleen Jain Vandana Lyrics

Pratah Kaleen Jain Vandana Lyrics

प्रतिदिन यह वंदना मुख्यतया प्रातः समय मे जरूर करनी चाहिए, इससे आपका पूरा दिन मंगलकारी होता है।

Jain Morning Prayer | Jain Pratahkalin Vandana

सिद्ध शिला पर विराजमान अनंतान्त सिद्ध परमेष्ठी भगवानों को मेरा नमस्कार है।

वृषभादिक महावीर पर्यन्त, उँगलियों के २४ पोरों पर विराजमान २४ तीर्थंकरों को मेरा नमस्कार है।

सीमंधर आदि विद्यमान २० तीर्थंकरों को मेरा नमस्कार है।

सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र को मेरा बारम्बार नमस्कार है।

चारों दिशाओं, विदिशाओं में जितने भी अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधू, जिन-धर्म, जिन-आगम, व जितने भी कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्य-चैत्यालय हैं, उनको मन-वच-काय से मेरा बारम्बार नमस्कार है। 

५ भरत, ५ ऐरावत, १० क्षेत्र सम्बन्धी, ३० चौबीसी के ७२० जिनवरों को मेरा बारम्बार नमस्कार है।

है भगवन! तीन लोक सम्बन्धी ८ करोड़ ५६ लाख ९७ हजार ४८१ अकृत्रिम जिन चैत्यालयों को मेरा नमन है। उन चैत्यालयों में स्थित ९२५ करोड़ ५३ लाख २७ हजार ९४८ जिन प्रतिमाओं की वंदना करती हूँ। \करता हूँ।

हे भगवन! मैं यह भावना भाता हूँ कि मेरा आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो। अगर आज मेरी मृत्यु भी आती है, तो मैं तनिक भी न घबराऊँ। मेरा अत्यंत शांतिपूर्ण, समाधिपूर्वक मरण हो। जगत के जितने भी जीव हैं, वे सभी सुखी हों, उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट, दुःख, रोगादि न सताए और सभी जीव मुझे क्षमा करें, तथा सभी जीवों पर मेरे क्षमा भाव रहें। 

मेरे समस्त कर्मों का क्षय हो, समस्त दुःख दूर हों, रत्नत्रय धर्म की प्राप्ति हो। जब तक मैं मोक्ष पद को न प्राप्त कर लूं तब तक आपके चरण कमल मेरे हृदय में विराजमान रहें और मेरा हृदय आपके चरणों में रहे। 

मैं सम्यक्त्व धारण करूं, रत्नत्रय पालन करूं, मुनिव्रत धारण करूं, समाधिपूर्वक मरण करूं,यही मेरी भावना है। 
हे भगवन! आज के लिए मैं यह नियम लेता हूँ की मुझे जो भी खाने में, लेने में, देने में, चलने फिरने मे आदि में आएगा, उन सब की मुझे छूट है, बाकि सब का त्याग है। 

जिस दिशा में रहूँ, आऊं, जाऊं, उस दिशा की मुझे छूट है बाकि सब दिशाओं में आवागमन का मेरा त्याग है अगर कोई गलती होवे तो मिथ्या होवे। 

जिस दिशा में रहूँ, उस दिशा में कोई पाप हो तो मैं उस का भागीदार न बनूँ। अगर किसी प्रकार के रोगवश, या अडचनवश प्रभु-दर्शन न कर सकूँ, तो उसके लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ। मन्दिर जी में पूजन के समय मेरे शरीर में जो भी परिग्रह हैं, जो भी मन्दिर जी में प्रयोग में आये, उन को छोड़ कर अन्य सभी परिग्रहों का मुझे त्याग है। अगर इस बीच मेरी मृत्यु हो जाय तो मेरे शरीर का जो भी परिग्रह है, उसका भी मुझे त्याग रहेगा।

अच्चेमि, पुज्जेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खो,
बोहिलाओं, सुगईगमणं, समाहिमरणं, जिनगुण सम्पत्ति होऊ मज्झं।

।। पंच परमेष्ठी भगवान की जय ।।

३६ बार णमोकार मंत्र बोलना। फिर आपस में दोनों हथेली को रगड़कर पूरे शरीर को स्पर्श करें।

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