प्रदोष व्रत कथा हिन्दी लीरिक्स | Pradosh Vrat Katha Hindi Lyrics
प्रदोष व्रत कथा हिन्दी लीरिक्स | Pradosh Vrat Katha Lyrics In Hindi
प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से दुखों का नाश होता है। मन वांक्षित फलो की प्राप्ति करने के लिए प्रदोष व्रत किया जाता है जिससे भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न होकर सभी सुखो से प्रदोष व्रत करने वाले की सभी मनोकामना पूर्ण करते है।
प्रदोष व्रत कथा विधि | Pradosh Vrat Katha Vidhi Aur Niyam
प्रदोष में बिना कुछ खाए व्रत रखने का विधान है। ऐसा करना संभव न हो तो एक समय फल खा सकते हैं। इस दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
भगवान शिव-पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बिल्व पत्र, गंध, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं।शाम के समय फिर से स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें। भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। इसके बाद शिवजी की आरती करें।
रात में जागरण करें और शिवजी के मंत्रों का जाप करें। इस तरह व्रत व पूजा करने से व्रती (व्रत करने वाला) की हर इच्छा पूरी हो सकती है।
प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। संक्षेप में यह कि चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्टों हो रहा था।
भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।
प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकदशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं।
प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।
रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है।
शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है।
संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।
प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा | Pradosh Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक निर्धन पुजारी था। पुजारी की मौत हो जाने के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने बेटे के साथ भीख मांग कर गुजारा करती थी। एक दिन विधवा स्त्री की मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई। राजकुमार अपने पिता की मृत्यु के बाद निराश्रित होकर भटक रहा था। पुजारी की पत्नी को उसपर दया आई और वह उसे अपने साथ ले गई और पुत्र की तरह रखने लगी. एक बार पुजारी की पत्नी दोनों पुत्रों के साथ ऋषि शांडिल्य के आश्रम में गई। वहां उसने प्रदोष व्रत की विधि और कथा सुनी और घर आकर उसने व्रत रखना शुरू कर दिया। बाद में किसी दिन दो बालक वन में घूम रहे थे। पुजारी का बेटा घर लौट आया लेकिन राजा का बेटा वन में गंधर्व कन्या से मिला और उसके साथ समय गुजारने लगा. कन्या का नाम अंशुमति था। दूसरे दिन भी राजकुमार उसी स्थान पर पहुंचा। वहां अंशुमति के माता-पिता ने उसे पहचान लिया और उससे अपनी पुत्री का विवाह करने की इच्छा प्रकट की। राजकुमार की स्वीकृति से दोनों का विवाह हो गया। आगे चलकर राजकुमार ने गंधर्वों की विशाल सेना के सथ विदर्भ पर आक्रमण कर दिया। युद्ध जीतने के बाद राजकुमार विदर्भ का राजा बन गया। उसने पुजारी की पत्नी और उसके बेटे को भी राजमहल में बुला लिया। अंशुमति के पूछने पर राजकुमार ने उसे प्रदोष व्रत के बारे में बताया। इसके बाद अंशुमति भी नियमित रूप से प्रदोष का व्रत रखने लगी। इस व्रत से लोगों के जीवन में सुखद बदलाव आए।