एकादशी व्रत कथा लीरिक्स | Ekadashi Vrat Katha Lyrics

एकादशी व्रत कथा लीरिक्स | Ekadashi Vrat Katha Lyrics In Hindi

सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु के संग धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने के विधान है। साथ ही जीवन में सुख-शांति के लिए व्रत भी किया जाता है।इस व्रत को करने से समस्त पाप कर्मो का नाश होता है।एकादशी तिथि को श्री हरि की उपासना की जाती है।

एकादशी व्रत कथा लीरिक्स | Ekadashi Vrat Katha Lyrics

एकादशी पूजा विधि एवम नियम | Ekadashi Pooja Vidhi Aur Niyam

 एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।

इसके बाद मंदिर की सफाई करें।

अब चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।

भगवान विष्णु को चंदन और हल्दी, कुमकुम से तिलक करें और दीपक जलाकर आरती करें।

इस दिन एकादशी का व्रत रखने और पूजा करने से आशीर्वाद और समृद्धि मिलती है। पालन ​​करने के लिए सख्त नियम हैं, जैसे बिना साबुन के स्नान करना, तुलसी के पत्ते न तोड़ना और पवित्रता और ब्रह्मचर्य बनाए रखना। चावल वर्जित है और कृतज्ञता महत्वपूर्ण है।

एकादशी व्रत मे क्या न करें | Ekadashi Vrat Me Kya Na Kare

गुस्सा न करें। घर में किसी भी तरह का वाद-विवाद या क्लेश करने से बचना चाहिए।  

लहसुन-प्याज और अन्य तरह की तामसिक चीजों से बचना चाहिए।

 इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए।

 गुस्सा न करें। घर में किसी भी तरह का वाद-विवाद या क्लेश करने से बचना चाहिए।

लहसुन-प्याज और अन्य तरह की तामसिक चीजों से बचना चाहिए।

किसी भी तरह का नशा न करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

 ईमानदारी से काम करना चाहिए और गलत कामों से बचे।

एकादशी व्रत मे क्या क्या जरूर करे | Ekadashi Vrat Me Kya Kya Jarur Kare

1. इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहाएं और स्नान के बाद तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं।
2. भगवान विष्णु के सामने व्रत और दान का संकल्प लेना चाहिए।
3. दिनभर कुछ नहीं खाना चाहिए। संभव न हो सके तो फलाहार कर सकते हैं।
4. दिन में मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर दान करना चाहिए।
5. किसी मंदिर में भोजन या अन्न का दान करना चाहिए।
6. सुबह-शाम तुलसी के पास घी का दीपक जलाना चाहिए और तुलसी की परिक्रमा करनी चाहिए।
7. शाम को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।

एकादशी व्रत की पौराणिक कथाएँ | Ekadashi Vrat Ki Pauranik Kathaye In Hindi

एकादशी का महत्व| Ekdashi Mahatva

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे जनार्दन! मैंने मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अर्थात मोक्षदा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: पौष माह के कृष्ण पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के देवता श्रीनारायण हैं। विधिपूर्वक इस व्रत को करना चाहिए। जिस प्रकार नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, सब ग्रहों में चंद्रमा, यज्ञों में अश्वमेध और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी तरह सब व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है। जो मनुष्य सदैव एकादशी का व्रत करते हैं, वे मुझे परम प्रिय हैं। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।

भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि धर्मराज, मैं तुम्हारे स्नेह के कारण तुमसे कहता हूँ कि एकादशी व्रत के अतिरिक्त मैं अधिक से अधिक दक्षिणा पाने वाले यज्ञ से भी प्रसन्न नहीं होता हूँ। अत: इसे अत्यंत भक्ति और श्रद्धा से युक्त होकर करें। हे राजन! द्वादशीयुक्त पौष कृष्ण एकादशी का माहात्म्य तुम एकाग्रचित्त होकर सुनो।


एकादशी व्रत कथा | Ekadashi Vrat Katha 

चम्पावती नगरी में एक महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था। उसके चार पुत्र थे। उन सबमें लुम्पक नाम वाला बड़ा राजपुत्र महापापी था। वह पापी सदा परस्त्री और वेश्यागमन तथा दूसरे बुरे कामों में अपने पिता का धन नष्ट किया करता था। सदैव ही देवता, बाह्मण, वैष्णवों की निंदा किया करता था। जब राजा को अपने बड़े पुत्र के ऐसे कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। तब वह विचारने लगा कि कहाँ जाऊँ? क्या करूँ?

अंत में उसने चोरी करने का निश्चय किया। दिन में वह वन में रहता और रात्रि को अपने पिता की नगरी में चोरी करता तथा प्रजा को तंग करने और उन्हें मारने का कुकर्म करता। कुछ समय पश्चात सारी नगरी भयभीत हो गई। वह वन में रहकर पशु आदि को मारकर खाने लगा। नागरिक और राज्य के कर्मचारी उसे पकड़ लेते किंतु राजा के भय से छोड़ देते।

वन में एक अतिप्राचीन विशाल पीपल का वृक्ष था। लोग उसकी भगवान के समान पूजा करते थे। उसी वृक्ष के नीचे वह महापापी लुम्पक रहा करता था। इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली मानते थे। कुछ समय पश्चात पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह वस्त्रहीन होने के कारण शीत के चलते सारी रात्रि सो नहीं सका। उसके हाथ-पैर अकड़ गए।

सूर्योदय होते-होते वह मूर्छित हो गया। दूसरे दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गर्मी पाकर उसकी मूर्छा दूर हुई। गिरता-पड़ता वह भोजन की तलाश में निकला। पशुओं को मारने में वह समर्थ नहीं था अत: पेड़ों के नीचे गिर हुए फल उठाकर वापस उसी पीपल वृक्ष के नीचे आ गया। उस समय तक भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे।
वृक्ष के नीचे फल रखकर कहने लगा- हे भगवन! अब आपके ही अर्पण है ये फल। आप ही तृप्त हो जाइए। उस रात्रि को दु:ख के कारण रात्रि को भी नींद नहीं आई।

उसके इस उपवास और जागरण से भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए। दूसरे दिन प्रात: एक ‍अतिसुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुअओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र! श्रीनारायण की कृपा से तेरे पाप नष्ट हो गए हैं। अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर। ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके भगवान आपकी जय हो! कहकर अपने पिता के पास गया। उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन के रास्ते चल दिए।

अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा। उसके स्त्री, पुत्र आदि सारा कुटुम्ब भगवान नारायण का परम भक्त हो गया। वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वन में तपस्या करने चला गया और अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ।

अत: जो मनुष्य इस परम पवित्र सफला एकादशी का व्रत करता है उसे अंत में मुक्ति मिलती है। जो नहीं करते वे पूँछ और सींगों से रहित पशुओं के समान हैं। इस सफला एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने से अथवा श्रवण करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

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